आनुपातिक एंव प्रगतिशील करों में अंतर (Proportional and Progressive Taxation) -


आनुपातिक कर (Proportational Tax) – आनुपातिक कर वह कर है जो सभी प्रकार की आय अथवा सम्पति पर समान दर से लगाये जाते है तथा कर की दरें सभी प्रकार की करदाताओं के लिए समान होती है, अनुपातिक कर कहा जाता है।

Prof. Taylor के अनुसार – “आनुपातिक कर वह है जिसमे कर की दर समान दर से लगाये जाते है।” आनुपातिक कर में धनी अथवा गरीब के बीच कर की दर के आधार पर विभेद नहीं किया जाता और दोनों के लिए कर की दरें समान होती है।

प्रगतिशील कर (Progressive Tax) – प्रगतिशील कर वह कर है जो आय एंव सम्पति में वृद्धि के साथ-साथ कर की दर बढती जाती है। इस प्रणाली में जिस व्यक्ति की आय जितनी ही अधिक होगी उससे उतना ही अधिक कर वसूला जायेगा। दुसरे शब्दों में - इस प्रकार के कर का भार अमीरों पर अधिक और गरीबों पर कम पड़ता है इसमें व्यक्तियों के आय को विभिन्न भागों में विभाजित कर दिया जाता है और उसी के अनुसार कर की दर निर्धारित की जाती है।


आनुपातिक करों के गुण (Merits of Proportional Taxation) -

1. सरलता – आनुपातिक करों को साधारण व्यक्ति भी आसानी से समक्ष सकता है क्योकि सभी व्यक्तियों की आय पर समान दर से कर लगाया जाता है। इन करों में प्रगतिशील करों जैसी जटिलता नहीं रहती है। सरकार के लिए भी कर की राशि का आकलन करना सरल होता है।

2. कर की दर में मनमानी वृद्धि पर रोक – चूँकि ये कर सभी आय वर्गो पर एक निश्चित अनुपात में लगाया जाता है अत: विभिन्न वर्गो पर मनमाने ढंग से कर की दर निर्धारित करने पर रोक रहती है।

3. आय की वितरण पूर्ववत रहता है – शास्त्रिय अर्थशास्त्रियों ने आनुपातिक करों को अच्छा माना था। इसमें सभी करदाता अपनी आय एंव सम्पति के अनुपात में कर देते है। इस प्रकार आनुपातिक कर के अंतर्गत आय एंव सम्पति का वितरण पूर्ववत रहता है।

4. अधिक काम तथा बचत करने की इच्छा अप्रभावित रहती है – ऐसे करों में अधिक काम तथा बचत करने की इच्छा पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता है जैसा कि प्रगतिशील कर के अंतर्गत पड़ता है।

आनुपातिक करों के दोष (Demerits of Proportional Taxation) -

आनुपातिक कर प्रणाली में उपरोक्त गुण पाये जाते है फिर भी इसके विरुद्ध निम्नलिखित दोष भी है –

1. यह कर न्यायसंगत नहीं है – करारोपण का मुख्य उदेश्य केवल आय प्राप्त करना ही नहीं बल्कि समाज में आय के वितरण की विषमता को कम करना भी है जिससे समाजिक न्याय की प्राप्ति हो लेकिन इस कर के द्वारा आय के वितरण की विषमता में कमी ण हो क्योकि एक गरीब व्यक्ति को 1 रु कर देने में अधिक उपयोगिता का त्याग होता है वरन एक धनी व्यक्ति की तुलना में।

2. कम आय की प्राप्ति – आनुपातिक करों में सभी वर्गो पर समान दर से कर लगाया जाता है ऐसे स्थिति में सरकार को काम आय प्राप्त होती है।

3. लोच की कमी – आनुपातिक कर प्रणाली में लोच की कमी होती है इसमें आवश्यकतानुसार आसानी से कमी या वृद्धि नहीं की जा सकती।

4. मितव्ययिता का अभाव – कर की दर सभी आय वर्गों के लिए समान है चूँकि प्रगतिशील कर की अपेक्षा आनुपातिक कर के अंतर्गत कर कम आय प्राप्त होती है अत: इस कर प्रणाली के अंतर्गत प्रति ईकाई कर वसूलने का खर्च अधिक होता है।

प्रगतिशील कर के गुण (Merits of Progressive Taxation)-

प्रगतिशील कर के गुण निम्नलिखित है –

1. प्रगतिशील कर न्यायोचित होते है – आय में वृद्धि के साथ लोगो की करदान क्षमता बदती जाती है और उन्हें अधिक कर देने में कष्ट का अनुभव नहीं होता चूँकि आय में वृद्धि के साथ मुद्रा की सीमांत उपयोगिता घटती जाती है अत: अधिक आय वर्ग वाले व्यक्तियों पर अधिक दर से तथा कम आय वर्ग वाले व्यक्तियों पर कम दर से कर लगाना न्यायोचित है।

2. त्याग की समानता – प्रगतिशील कर त्याग की समानता के सिधांत पर आधारित है। धनी तथा गरीब को कर देने में समान सिधांत उपयोगिता का त्याग तभी कर सकते है जब गरीबो की अपेक्षा धनी व्यक्तियों पर कर का बोक्ष अधिक है।

3. लोचदार – प्रगतिशील कर प्रणाली म लोचदार होते है आवश्यकता पड़ने पर करों जी दर में वृद्धि करके अधिक आय प्राप्त की जा सकती है और यदि समान्य स्थिति है तो करों की दरो में कमी भी जा सकती है।

4. मितव्ययिता – प्रगतिशील कर प्रणाली लोचदार होते है क्योकि कर की दर में वृद्धि होने से सरकार को अधिक आय प्राप्त होती है और कर वसूलने में सरकार को कम खर्च होती है।

5. सरकार को अधिक आय की प्राप्ति – प्रगतिशील करों के अंतर्गत आय में वृद्धि के साथ साथ कर की दर बढ़ती जाती है जिससे सरकार को अधिक आय प्राप्त होती है।

प्रगतिशील कर के दोष (Demerits of Progressive Taxation) -

1. कम चोरी की संभावना – प्रगतिशील कर की दरें ऊँची होती है ऐसे स्थिति में करदाताओ को करों की चोरी करने की भावना उत्पन्न होती है। करदाता झूठी हिसाब – किताब दिखाकर करों से बचने का प्रयास करते है।

2. बचत एंव उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव – अधिक आय पर कर की दर ऊँची होने पर लोगो में अधिक बचत तथा उत्पादन करने की प्रेरणा कम हो जाती है तथा कर की दर अधिक होने से देश से पूंची भी दूसरे देशों में प्रभावित होने लगता है।

3. ईमानदारी पर कर – प्रगतिशील करों को ईमानदारी पर कर कहा जाता है जो व्यक्ति ईमानदार है उन्ही पर कर का भार अधिक पड़ता है किन्तु बेईमान लोग कम आय दिखाकर कर देने से बच जाते है।

4. कर की मनमानी दर – प्रगतिशील करों की दर में कर निर्धारण का भी निश्चित मापदंड नहीं होता बल्कि इन्हें मनमाने ढंग से लगाया जाता है इससे कर प्रणाली में अन्याय होने की गुंजाइश होती है।

इस प्रकार आनुपातिक कर और प्रगतिशील करों का गुण-दोषों की विवेचना के उपरांत यह स्पष्ट होता है कि 20वी शताब्दी में मनुष्य आय की विषमता को दूर करना राज्यस्व की नीति का एक प्रमुख उदेश्य हो गया है प्रगतिशील प्रणाली आधुनिक सरकारों की आय वितरण की असमानता कम करने की एक अस्त्र के रूप में कार्य करता है। प्रगतिशील कर प्रणाली में इस गुण के अलावा अच्छे कर के सभी गुण भी पाये जाते है। Keynes ने रोजगार की दृष्टि से प्रगतिशील करों को आवश्यक माना है।