सार्वजनिक ऋण का भार (Burden of Public Debt)

सार्वजनिक ऋण का भार (Burden of Public Debt) – सार्वजनिक ऋण किसी देश की सरकार द्वारालिया गया उधार होताहै। यह उधार आतंरिक तथा बाहरी दोनों स्त्रोतों से लिया जा सकता है। यधपि उधार देने (भुगतान का) दायित्व सरकार पर होता है इसलिए इसका भार जनता पर पड़ता है।


सार्वजनिक ऋण चाहे आंतरिक हो याविदेशी इसके ब्याज सहित भुगतान सरकार ही करती है परन्तु ब्याज पर होने वाले व्यय से निपटने के लिए सरकार देशवासियों पर नया कर लगती है। इस तरह सार्वजनिक ऋण का अंतिम भार करदाताओं पर पड़ता है।

Prof. A. P. Lerner - “सार्वजनिक ऋण या राष्ट्रीय ऋण में वृद्धि से सरकरी बांडो के स्वामी कि कार्य करने की इच्छा कम हो जाती है तथा बचत की इच्छा भी कमजोर हो जाती है।”

सार्वजनिक ऋण का भार (Types of Public Debt)

सार्वजनिक ऋण का भार दो प्रकार का होता है -

1. सार्वजनिक ऋण का आंतरिक भार (Burden of Internal Public Debt)

2. सार्वजनिक ऋण का भार बाहरी भार (Burden of External Public Debt)

1. सार्वजनिक ऋण का आंतरिक भार (Burden of Internal Public Debt)– Prof. Dalton आंतरिकऋणको इस प्रकार परिभाषित करते है कि “एकऋण आंतरिक तब होता है जब उन लोगों तथा संस्थाओ द्वारा जुटाया जाता है जो उस क्षेत्र में होते है जिसका नियंत्रण ऋण लेने वाले सार्वजनिक आधिकारियों द्वारा किया जाता है।”

सार्वजनिक ऋण के आंतरिक भार निम्न है-

i). प्रत्यक्ष मौद्रिक भार (Direct Money Burden)– प्रत्यक्ष मौद्रिक भार वस्तुओं एंव सेवओं की उस राशि के समान होता है जिनका बलिदान लोग करो में वृद्धि के कारण करते है।आंतरिक ऋण में धन का पुनवितरण मौद्रिक भार नहीं होता क्योकि सरकार जनता से ही ऋण लेती है और उन्ही पर कर लगाकर, उन्हें पर कर लगाकर, उन्हें वापस कर देती है।

ii). परोक्ष धन भार (Indirect Money Burden) – जब सरकार द्वारा लिए गए ऋण विकास कार्यों पर खर्च किये जाते है तो इससे वस्तुओं और सेवाएँ की मांग बढ़ जाती है और मूल्यों में भी वृद्धि हो जाती है। जिससे समाज पर नया बोक्ष पड़ता है।

Ratchfold की राय में –“ऐसा ऋण एक बोक्ष है क्योकि जब यह बढती हुई कर प्रणाली से मिलता है तो निवेश की पर्याप्तमात्रा को संकुचित करती है तथा इससे राष्ट्रीय आय में कमी आती है।”

iii). स्पष्ट वास्तविक भार (Direct Real Burden) – सरकार आंतरिक ऋण के ब्याज के भुगतान के लिए जनता पर नये नये कर लगती है। स्पष्ट है कि करदाता निर्धन लोगहै जबकि ऋण दाता उनकी तुलना में समृद्ध लोग है। ऐसीस्थिति में क्रय शक्ति निर्धन लोग के पास न होकर समाज के समृद्ध लोगों के पास होती है जिससे आय के वितरण में इस परिवर्तन से समाज के निर्धन वर्ग के लोगों पर अधिक बोक्ष पड़ता है।

iv). परोक्ष वास्तविक भार (Indirect Real Burden) – सार्वजनिक ऋण का भार चुकता करने के लिए सरकार सधारण लोगों पर अतिरिक्त कर लगती है। जिसके परिणाम स्वरूप आर्थिक असमानताएँ बढती है इससे कार्य और बचत करनेकी इच्छा खत्म हो जाती है।

2. सार्वजनिक ऋण का बाहरी भाग (Burden of External Public Debt) – Prof. Dalton के शब्दों में – “एक बाहरी ऋण वह ऋण होता है जो विदेशी लोगों तथा संस्थओं से लिया जाता है।”

बाहरी ऋण के भार निम्नलिखित है –

i). प्रत्यक्ष धन भार (Direct Money Burden) – सरकार द्वारा ऋण या ब्याज के भुगतान में देश कुछ वस्तुओं एंव सेवओं से वंचित रह जाता है। ऋण देने वाले देश को हर वर्ष भरी मात्रा में धन देना पड़ता है ब्याज क्र रूप में। समयपूरा हो जाने पर मूल राशि, विदेशी विनिमय के रूप में देनी पड़ती है जो कि बाहरी ऋण का स्पष्ट धन भार है।

ii). अप्रत्यक्ष धन भार (Indirect Money Burden) – ऋण प्राप्त करने वाला देश को ब्याज का भुगतान प्राय: वस्तुओं और सेवओं के रूप में करता है।इसका अर्थ है कि देश को भारी मात्रा में वस्तुओं एंव सेवओं कानिर्यात करना पड़ता है, जिसके परिणाम स्वरूप महंगाईबढ़जाती है। इससेराष्ट्र के आर्थिक विकास को हानी पहुंचती है।

अत: इस प्रकार हम कह सकते है कि जब उत्पादक कार्यों पर सार्वजनिक ऋण व्यय किया जाता है तब यह भारपूर्ण नहीं होगा इसके विपरीत यदि ऋण का उपयोग अनुउत्पादक कार्यों पर किया जाए तो यह भार पूर्ण होगा।