सार्वजनिक ऋण भुगतान करने के विभिन्न विधियां (Methods of Repaying Public Debt)
सार्वजनिक ऋण से छुटकारे/भुगतान
का अर्थ है ऋण की वापसी। सार्वजनिक ऋण वापसी के लिए निश्चित समय अनुसार सरकार
द्वारा चुकता करना होता है जैसे कि एक व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा ऋण वापिस किया
जाता है। सरकार को जितनी जल्दी हो सके, ऋण लौटा देना चाहिए सार्वजनिक ऋण जनता के
प्रति ऋणों से छुटकारा पाने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है-
1. ऋणों का
बदलाव (Convention of Loan) – ऋणों में बदलाव, सार्वजनिक ऋण भुगतान करने का एक
प्रमुख्य उपाय है। इसका अर्थ है कि एक पुराने ऋण को नए ऋण में परिवर्तित कर दिया
जाता है। इस प्रणाली के अधीन उच्च ब्याज वाले सार्वजनिक ऋण को न्यून ब्याज
सार्वजनिक ऋण में परिवर्तित किया जाता है। Buehler के शब्दों में – “ऋण परिवर्तन
का अर्थ साधारण ब्याज की दरों की कमी से लाभ उठाकर ब्याज की राशि को कम करने के
हेतु वर्तमान ऋणों को नए ऋणों में बदलना है।”
2. बजटीय
आधिक्य का प्रयोग (Utilization of Budgetary Surplus) – जब सरकार बजट से अतिरिक्त
कमाई करती है तो इसका प्रयोग ऋण चुकाने के लिए किया जाना चाहिए। बजट में आधिक्य
राशि तभी होती है जब सार्वजनिक कोष में सार्वजनिक व्यय से अधिक धनह होता है परन्तु
वर्तमान में यह विधि बहुत कम मिलती है। सरकार प्राय: बजट की अधिक्य राशि को बाजार से
अपने ही बांड खरीदने तथा लोगो से ऋण पत्र खरीदने के लिए करती है।
3. आवधिक
वार्षिक (Terminal Annuity) – इस विधि के अंतर्गत सरकार स्थाई या दीर्घकालीन ऋण का
भुगतान वार्षिक किस्तो के रूप में करती है। यह ऋण चुकता करने का सबसे सरल तरीका है।
इस होता विधि के द्वारा सरकार पर धीरे – धीरे ऋण का दायित्व कम होता चला जाता है तथा
भुगतान की अंतिम तिथि पर एकदम समस्त ऋण का भुगतान नहीं करना पड़ता।
4. ऋण का
परित्याग करना (Repudication of Debt) – यह सरकार द्वारा ऋण से भुगतान करने का सबसे
सरल ढंग है। साधारण शब्दों में इसका अर्थ है कि सरकार द्वारा ऋण का मूलधन तथा उस
पर ब्याज वापस करने से इंकार करना। इस विधि में सरकार ऋण वापस करने संबंधी अपने दायित्व को नहीं मानती है। इसे
निश्चित रूप से ऋण की वापसी नहीं बल्कि ऋण का नाश कहा जायेगा। सरकार उग्र
स्थितियों में वह आंतरिक एंव बाहरी ऋणों के दायित्व का परित्याग कर सकता है।
आन्तरिक रूप से यह तब होता है जब देश में वितीय विनाश, दिवालियापन की स्थिति
उत्पन्न होती है तथा बाहारी रूप में ऐसा तब होता है जब सरकार विदेशी विनिमय के
अभाव का समाना कर रही होती है। यह प्रक्रिया बहुत जोखिमपूर्ण है।इस प्रकार की निति
को किसी भी कीमत पर नहीं अपनाना चाहिए।
5. शोधन
कोष (Sinking Funds) – यह विधि सर्वप्रथम Huge Walpole द्वारा इंग्लैंड में
स्थापित की गई। सार्वजनिक ऋण चुकता करने का ढंग सबसे व्यवस्थित एंव सर्वोतम है। इस
प्रणाली में सरकारे एक अलग कोष की स्थापना करती है जो शोधन कोष में जमा कर दी जाती
है ताकि ऋण परिपक्वता का समय आने तक पर्याप्त धन एकत्रित हो जाये जिससे न केवल ऋण
की राशि बल्कि ऋण पर ब्याज का भुगतान किया जा सके। शोधन कोष तथा अनिश्चित शोधन
कोष। एक निश्चित शोधन कोष वह है जिसमे सरकार हर वर्ष एक निश्चित राशि जमा करती है।
दूसरी ओर अनिश्चित शोधन कोष वह है जिसमे सरकार तब ही राशि जमा करवाती है जब सरकार
बजट के अतिरिक्त राशि प्राप्ति करती है।
6. वार्षिक
आंशिक वापसी (Yearly Partial Repayment) – इस विधि
के अनुसार ऋण का भाग बजट के राजस्व से लौटा दिया जाता है ताकि कुल ऋण कुछ ही वर्षो
में वापस लौटा जा सके। यधपि इसमें एक कठिनाई यह है कि बजट हर वर्ष अधिशेष होना
चाहिए। अन्यथा पुराने ऋण की आंशिक समाप्ति के लिए या तो नए ऋण लेने पड़ेंगे या अन्य
व्ययों में कमी करना होगा।
7. करारोपण
की अतिरिक्त अवस्था (Additional Provision of Tax) – नए कर प्राय: राजस्व एकत्रित
करने के लिए लगाए जाते है। इस कोष का प्रयोग ऋणों और ब्याज को चुकता करने के लिया किया
जाता है। इस विधि के अनुसार आय का पुनवितरण आसानी से करदाताओ की ओर सरलता से स्थानान्तिरत जा सकता है।
8. पूंजी
शुल्क (Capital Levy) – ऋण वापसी का यह सबसे विवादस्पद ढंग है। पूंजी शुल्क में
लोगों कि सभी पूंजी मूल्य वाली वस्तुओं पर स्वामित्व वाली पूँजी के न्यूनतम से ऊपर
कर लगाया जाता है। इस विधि का सुक्षाव Richardo & Pigou जैसे अर्थशास्त्रियों
नए दिया जिसके अनुसार युद्ध एंव अन्य संकटकालीन स्थितियों में लिए गए भारी ऋणों को
चुकता करने के लिए पूँजी कर लगाए जाये।
इस प्रकार उपरोक्त विधियों द्वारा सार्वजनिक ऋणों का भुगतान किया जाता है।
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