कर निर्धारण मे न्याय से संबंधित सिद्धांत

कर निर्धारण मे न्याय से संबंधित सिद्धांत निम्नलिखित है -


1. वितीय सिद्धांत (Financial Theory) इस सिद्धांत के अनुसार कर सार्वजनिक आय का एक प्रमुख साधन है अत: न्यायपूर्ण कर व्यवस्था वही है जिसमे कम से कम विरोध के द्वारा अधिक-से-अधिक आय प्राप्त किया जा सके। जनता प्राय: कर का विरोध करती है, अत: इस विरोध को न्यूनतम करके अधिकतम आय प्राप्त करना ही सरकार का उदेश्य होंना चाहिए। इस संबंध मे Colbert ने कहा है- “बतख को इस प्रकार नोचो की वह कम से कम विरोध के साथ चिल्लाए।” (Pluck to the goose with as little squealing as possible.) इस सिद्धांत मे न्याय की अपेक्षा प्राप्ति पर अधिक ज़ोर दिया गया है।

2. जैसे पाओ वैसे छोड़ो सिद्धांत (Leave as you find them principle) इस सिद्धांत का मूल आधार यह है कि कर-प्रणाली लोगो को वैसे ही छोड़ दे जैसे उन्हे पाती है। दूसरे शब्दो मे कर प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिससे समाज के धन के वितरण मे किसी प्रकार का परिवर्तन न हो। करो के प्रयोग द्वारा समाज मे न तो धन का वितरण की विषमता को कम करना चाहिए और न तो इसे बढ़ाना चाहिए। कर देने के उपरांत विभिन्न करदाताओ की आय का अनुपात पूर्ववत बन रहना चाहिए।

यह सिद्धांत भी न्याय का सही सिद्धांत नहीं माना जा सकता क्योकि कल्याणकारी राज्य मे करारोपण का मूल आधार सामाजिक न्याय है। करारोपण का उदेश्य केवल आय प्राप्त करना ही नहीं है वरन समाज मे व्याप्त आय और धन की विषमताओ को दूर करना भी है।

3. क्षतिपूर्ति अथवा समाजवादी सिद्धांत (Compensatory or Socialist Principle) इस सिद्धांत के अनुसार विभिन्न करो का प्रयोग इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे समाज मे व्याप्त आय एंव धन की विषमता को दूर किया जा सके। इसके लिए यह आवश्यक है कि धनी वर्ग पर अधिक मात्र मे तथा निर्धन वर्ग पर कम मात्र मे कर लगाया जाए। कम आय वाले व्यक्तियों को कर से मुक्त करना भी आवश्यक हो जाता है।

इस सिद्धांत कि विशेषता यह है कि सामाजिक न्याय पर आधारित है क्योकि इसका मूल उद्देश्य समाज मे धन का समान वितरण प्राप्त करना है। परंतु अर्थशास्त्रियों का मत है कि इस सिद्धांत के अनुसार धनी व्यक्तियों पर अधिक मात्रा मे कर लगाने से बचत पूंजी निर्माण एंव उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। यही सिद्धांत का त्रुटि है।

4. प्रत्येक व्यक्ति कुछ देने का सिद्धांत (Everybody should pay something principle) – इस सिद्धांत के अनुसार राज्य के प्रत्येक व्यक्ति कुछ न कुछ कर के रूप मे सरकार को देना चाहिए। इसके दो आधार है – पहली बात यह है कि राज्य मे रहकर प्रत्येक नागरिक को सार्वजनिक व्यय का लाभ प्राप्त होता है अत: उसके दल को कुछ न कुछ करदान करना न्यायसंगत है। दूसरी बात यह है कि कर देने से नागरिकों मे नागरिकता कि भावना पनपती है तथा वे राजस्व नीति के प्रति अधिक जागरूक हो जाते हैं। अत: प्रत्येक नागरिक मे नागरिकता कि भावना लाने के लिए कुछ-न-कुछ कर देना चाहिए।

इस सिद्धांत न्यायोचित नहीं कहा जा सकता है। इसके दो कारण है - पहली बात यह है कि कभी-कभी सार्वजनिक व्यय के लाभ देश के नागरिको को प्राय: नहीं होता। अत: उनपर कर लगाना न्यायसंगत नहीं। दूसरी बात यह है कि इस सिद्धांत के अनुसार निर्धन व्यक्ति को भी कर देना पड़ेगा किन्तु सामाजिक न्याय के आधार पर यह बात ठीक नहीं है कि केवल नागरिकता कि भावना जागृत करने के लिए गरीबो पर बोक्ष लाद देना वुद्धिमानी नहीं है क्योकि उनकी कर देने कि क्षमता नहीं भी हो सकती है।

5. De-Marco का आय का सिद्धांत (De-Marco Income Theory) - De-Marco ने करारोपण के संबंध मे आय का सिद्धांत दिया है। राज्य सार्वजनिक सेवाओ का उत्पादक है तथा नागरिक उनके उपभोक्ता। अत: राज्य और नागरिक मे विनिमय संबंध (Exchange Relationship) है। सार्वजनिक सेवाओ का उपभोग नागरिक अपनी आय के अनुसार करते है अत: यह सिद्धांत बतलाता है कि नागरिक को अपनी आय के अनुपात मे कर देना चाहिए।

De-Marco द्वारा दिए गए इस सिद्धांत को भी न्याय का सही सिद्धांत नहीं माना जा सकता। इस सिद्धांत के अनुसार नागरिक सार्वजनिक सेवाओ का उपभोग अपनी आय के अनुपात मे करते है परंतु यह बात सर्वदा सत्य नहीं है। आजकल कल्याणकारी राज्य मे नागरिक अपनी आय से अधिक अनुपात मे भी सार्वजनिक सेवाओ का प्राप्त कर सकते है।