भारतीय संविधान के निमार्ण में संविधान सभा की भूमिका 

भारत एक स्वाधीन राष्ट्र है, स्वाधीन राष्ट्र का अपना एक संविधान होता हैं जिसके अनुसार उस राष्ट्र की शासन-व्यवस्था का संचालन होता है। वही संविधान राष्ट्रिय विकास में भरपूर योगदान दे सकता हैं। जिसे उस राष्ट्र की जनता ने स्वय बनाया हो अथवा जिसे उस संविधान निमार्ण सभा द्वारा बनाया गया हो। संविधान निमार्ण के लिए गठित प्रतिनिधि सभा को सविंधान सभा कहते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरु के शब्दों में – “यह एक चलायमान राष्ट्र हैं जो अपनी पुरानी पोशाक को उतारकर स्वनिर्मित नविन पोशाक धारण करता हैं।” इसमें राष्ट्र के नागरिक अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से कार्यरत रहते हैं। इस दृष्टि से इसका निश्चित क्रांतकारी महत्व हैं।

भारत में संविधान सभा की मांग एक प्रकार से राष्ट्रिय स्वंत्रता की मांग था। भारत में सविंधान सभा का प्रथम दर्शन 1895 के स्वराज्य विधेयक (Swarajya Bill) में होता हैं जिसे बालगंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया था। 20वी सदी में संविधान सभा के निर्माण के विचार की ओर संकेत महात्मा-गाँधी ने किया और उन्होंने कहा – “भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छा के अनुसार ही तैयार होगा।” इसके बाद औपचारिक रूप से संविधान सभा के विचार का प्रतिपादन ऍम० एन० रॉय ने किया और इस विचार को लोकप्रिय बनाने एवं इसे मूर्त रूप देने का का कार्य पंडित जवाहरलाल नेहरु ने किया और उन्ही के प्रयत्नों से काँग्रेस ने औपचारिक रूप से घोषणा की थी कि – “यदि भारत को आत्म निर्णय का अवसर मिलता है तो भारत के सभी विचारो के लोगो की प्रतिनिधि सभा बुलाई जानी चाहिए, जो सर्वसम्मत संविधान का निर्माण कर सके।” यही संविधान सभा होगी। Dec 1936 के लखनऊ काँग्रेस अधिवेशन में संविधान सभा के अर्थ और महत्व की व्याख्या की गई और 1937 व 1938 के अधिवेशन में इस मांग को दोहराते हुए प्रस्ताव पारित किया गया कि – “एक स्वतंत्र देश के संविधान निर्माण का एक मात्र तरीका सविंधान सभा हैं सिर्फ प्रजातंत्र और स्वंत्रता में विश्वास न रखने वाले ही इसका विरोध कर सकते हैं।” Aug 1940 के प्रस्ताव में ब्रिटिश सरकार ने कहा की – “भारत का संविधान स्वभावतः स्वयं भारतवासी ही तैयार करेंगे।” इसके बाद 1942 की क्रिप्स योजना के द्वारा ब्रिटेन ने स्पस्टतया स्वीकार किया की भारत में एक निर्वाचित सविंधान सभा का गठन होगा जो भारत के लिए संविधान तैयार करेगी। लेकिन भारतीयों द्वारा अन्य महत्वपूर्ण आधारों पर क्रिप्स योजना को अस्वीकार कर दिया गया। अंत में 1946 की कैबिनट मिशन योजना में भारतीय संविधान सभा के प्रस्ताव को स्वीकार किया, इसे व्यवहारिक रूप प्रदान कर दिया गया। कैबिनट मिशन योजना के अनुसार जुलाई 1946 में संविधान सभा के चुनाव हुए। संविधान सभा के लिए कुल 389 सदस्यों में से, प्रान्तों के लिए निर्धारित 296 सदस्यों के लिए ही चुनाव हुए। 9 Dec 1946 को संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में संविधान बनने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा की अस्थाई अध्यक्षता में संविधान सभा की प्रथम बैठक हुई। जिसमे 210 सदस्य उपस्थित थे। 11 Dec 1947 को डॉ० राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष निर्वाचित हुए और बी० एन० राव को Constitutionial Adviser के रूप में नियुक्त किया गया। 13 Dec 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अपना प्रशिद्ध Objective Resolution प्रस्तुत कर सविंधान की आधारशिला रखी थी, जिसे 22 Jan 1947 ई० को पारित किया गया। इस प्रस्ताव में पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा की – “मैं आपके सामने जो प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहा हूँ उसमे हमारे उदेश्यों की व्याख्या की गयी हैं, योजना की रूपरेखा दी गयी है और बताया गया है की हम किस रास्ते पर चलने वाले हैं।” उद्देश्य प्रस्ताव में भारत को स्वंतंत्र और पूर्णप्रभुत्व संपन्न गणराज्य घोषित करने की आंकंक्षा व्यक्त की गयी है। उसमे यह भी बताया गया है की प्रभुत्व सपन्न का वास जनता में होगा तथा भारत के सभी नागरिको को सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक न्याय तथा विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना और व्यवसाय की स्वतंत्रता, क़ानूनी और सार्वजनिक नैतिकता के अधिकार प्राप्त होंगे।

उदेश्य :- प्रस्ताव के संबंध में पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा था कि – “इस प्रस्ताव में हमारी वे अकांक्षाए व्यक्त की गई है जिनके लिए हमने कठोर परिश्रम एवं संघर्ष किए हैं। संविधान सभा इन्ही उदेश्यों के आधार पर हमारे संविधान का निर्माण करेगी।” संविधान सभा ने इस उदेश्य और प्रस्ताव के साथ संविधान के निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया। संविधान निर्माण सुचारू रूप से चलाने के लिए संविधान सभा ने अनेक समितियों का गठन किया जिनमे से प्रारूप समिति (DRAFTING COMMITTEE), केन्द्रीय संविधान समिति, मौलिक अधिकार समिति आदि प्रमुख थे। डॉ० अम्बेदकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति ने फ़रवरी 1948 ई० में संविधान का प्रारूप तैयार किया और उसके विषय में सभी भारतवासियो के विचार आमंत्रित किए गए। 15 Nov 1948 ई० को संविधान की एक-एक धरा पर विचार आरंभ हुआ जो 17 Oct 1949 ई० को समाप्त हुआ। यह संविधान का द्वितीय(2nd) वाचन था। इस प्रकार तीसरा वाचन 14 Nov 1949 ई० को शुरू हुआ जो 26 Nov 1949 को समाप्त हुआ और इस दिन अध्यक्ष के हस्ताक्षरोपरान्त संविधान को पारित किया गया। Dec 1946, से NOV 1949 तक सविंधान सभा ने कुल 165 दिन काम किया। संविधान सभा को अपना कार्य पूरा करने में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन लगा। सम्पूर्ण संविधान 26 जनवरी 1950 ई० को लागु किया गया।