करदान योग्यता का सिद्धांत (Ability to Pay Tax Principle)

करारोपण के लाभ सिद्धांत एक संतोषजनक सिद्धांत न होने पर कर दान योग्यता की सिद्धांत के सबसे बड़ा समर्थक वास्तव में J.S.Mill है। उन्होंने लाभ के सिद्धांत का पूरी तरह बहिष्कार कर दिया और कर-प्रणाली में न्याय प्राप्त करने के लिए करदान योग्यता के सिद्धांत का समर्थन किया। उन्होंने इस सिद्धांत की व्याख्या करदाताओं के त्याग की समानता के रूप में किया। J.S.Mill के अनुसार - “राजनीति के सिद्धांत के रूप में करारोपण की समानता का अर्थ है- त्याग की समानता। इसका अर्थ सरकार के व्यय में प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से को इस प्रकार निश्चित करना है कि जिससे वह अपने योगदान से प्रत्येक दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा जो अपना भाग से असुविधा करता है न कम और न अधिक अनुभव करें।”


कर देय योग्यता के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कर देने की योग्यता के अनुसार कर देना चाहिए। जिन करदाताओं करदान क्षमता अधिक हो उन्हें कर देना चाहिए तथा जिनकी कर दान योग्यता कम हो उन्हें कम कर देना चाहिए। इस आधार पर धनि व्यक्तियो पर अधिक और गरीब व्यक्तियों पर कम कर लगाना चाहिए। कर दान योग्यता का सिद्धांत न्यायपूर्ण होने के कारण अधिक संतोषजनक माना जाता है। किसी व्यक्ति पर कर देय योग्यता सिद्धांत लागू करने से पहले उस व्यक्ति की कर देय योग्यता की माप करना अनिवार्य है। इसकी माप करने के निम्नलिखित तरीके-

1. व्यक्ति की आय – यदि व्यक्ति की बचत आय एंव निवेश की क्षमता अधिक होगी तो कर दान क्षमता अधिक होगी इसके विपरीत यदि व्यक्ति की बचत न के मात्रा होगी अर्थात् आय कम होगी तो करदान क्षमता कम होगी।

2. परिवार की आकर – परिवार का आकर भी एक मुख्य घटक है जो कि करदाता की कर देने की क्षमता को प्रभावित करता है। समान आय की स्थिति में बड़ें परिवार की कर देने की क्षमता छोटे परिवार की तुलना में कम होती है।

3. उपभोग – किसी व्यक्ति द्वारा उपभोग पर किया गया व्यय भी उसके कर देने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह उपभोग ही है जिससे मापा जाता है किवास्तव में व्यक्ति अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए अर्थव्यवस्था से कितने साधन लिये है। इस आधार पर किसी व्यक्ति की कर देय योग्यता की माप कर सकते है।

अर्थशास्त्रियों ने कर दान योग्यता का आधार निश्चित करने लिए निम्नलिखित दो दृष्टिकोण को अपनाया गया है –

i). भावात्मक एंव व्यक्तिपरक दृष्टिकोण (Subjective Approach) – जब कोई भी व्यक्ति सरकार को कर लेता है तो उसे त्याग करना पड़ता है। अत: इस त्याग को करदान क्षमता का प्रतीक माना जा सकता है। कर दान योग्यता का अनुमान किसी व्यक्ति के कर देने के फलस्वरूप उत्पन्न त्याग से लगाया जा सकता है। इसलिए J.S.Mill ने इस सिद्धांत की व्याख्या समान त्याग के रूप में किया। समान त्याग की धारणा को तीन प्रकार से व्यक्त किया गया है – समान निरपेक्ष त्याग, समान अनुपातिक त्याग, समान सीमांत त्याग

a). समान निरपेक्ष त्याग (Equal Absolute Sacrifice) - समान निरपेक्ष त्याग का मतलब है की कर से उत्पन्न त्याग सभी करदाताओं के लिए बराबर होनी चाहिए। यदि किसी व्यक्ति के पास अधिक आय है तो उसे अधिक कर देना चाहिए और जिनके पास कम आय है उसे कम कर देना चाहिए। दुसरे शब्दों में करदाताओं को समान त्याग करना पड़ेगा।

b). समान अनुपातिक त्याग (Equal Proportational Sacrifice) - समान अनुपातिक त्याग से आशय है कि कर से उत्पन्न त्याग करदाताओं के लिए उनकी आय के समानुपातिक होना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार भी अधिक आय वाले को अधिक तथा कम आय वाले को कम कर देना चाहिए किन्तु आय से त्याग का अनुपात (Ratio of Sacrifice of Income) सभी के लिए समान होना चाहिए। यह सिद्धांत प्रगतिशील कर (Progressive Tax) की ओर संकेत करता है तथा करदाताओं को त्याग को उनके द्वारा अपनी आय से प्राप्त  आर्थिक कल्याण या संतोष से जोडता है।

c). समान सीमांत त्याग (Equal Marginal Sacrifice) - समान सीमांत त्याग से आशय है कि सभी करदाताओं का सीमांत त्याग तभी बराबर होगा जब अधिक आय वाले अधिक कर दे तथा कम आय वाले अधिक कर दे तथा कम आय वाले कर दे। कुछ व्यक्तियों जिनकी आय बहुत ही कम है कर मुक्त हो। यदि प्रत्येक करदाताओं का सीमांत त्याग बराबर हो तो सभी न्यूनतम होता है। इसलिए इस सिद्धांत को न्यूनतम सामूहिक त्याग का कहते है। मस्ग्रेव के अनुसार – यह कराधान का अंतिम है। यह सिद्धांत प्रगतिशील कराधान की ओर ले जाता है।

ii). वस्तुगत दृष्टिकोण (Objective Approach) – त्याग दृष्टिकोण की व्यवहारिक कमियों को देखते हुए अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने करदान क्षमता के माप के लिए वस्तुगत पद्धति को अपनाने का सुक्षाव दिया है। Seligmen ने त्याग सिद्धांत के विपरीत विचार दिया है कि कर देने की क्षमता को मौद्रिक मूल्य पर विचार करना चाहिए न कि करदाताओं की भावना तथा कष्टों पर। वस्तुगत दृष्टिकोण से किसी व्यक्ति की कर देय योग्यता निम्नलिखित तीन बातों से मापी जा सकती है जिन्हें करदान योग्यता का संकेत (Index of Ability to Pay) कहते है- सम्पति, उपभोग, आय

a). सम्पति (Property) – प्रारंभिक अर्थशास्त्रियों ने सम्पति को भुगतान क्षमता का सर्वश्रेष्ठ आधार माना है। जिस व्यक्ति के पास अधिक सम्पति है उसकी करदान योग्यता अधिक होगी तथा जिसके पास कम सम्पति है उसकी करदान योग्यता कम होगी।

b). उपभोग (Consumption) – उपभोग के स्तर अथवा व्यय को भी व्यक्ति की कर देय  योग्यता का सूचक माना गया है। इस प्रकार का विचार रखने वाले Irving Fisher का नाम प्रमुख है जो व्यक्ति उपभोग पर अधिक व्यय करता है उसकी कर दान योग्यता अधिक समक्षी जाती है  दूसरी ओर जिस व्यक्ति का उपभोग व्यय कम है उसपर कम कर लगाना चाहिए।

c). आय (Income) – वर्तमान समय में आय को करदान योग्यता का सर्वोतम तथा न्यायोचित आधार माना गया है। जिस व्यक्ति की आय अधिक है उसकी करदान योग्यता भी अधिक मानी जाती है तथा उसपर अधिक कर लगाया जाता है दूसरी ओर कम आय वाले व्यक्ति पर कम दर लगाया जाना चाहिए। यहाँ आय को शुद्ध आय के रूप में लेना चाहिए न कि कुल आय। कुल आय में से आय को अर्जित करने के व्यय को घटा देने से शुद्ध आय प्राप्त होती है।