मौलिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं ? भारतीय नागरिको के कौन-कौन से मौलिक अधिकार हैं ?

मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता हैं, जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक होने के कारण सविंधान द्वारा नागरिको प्रदान किए जाते हैं और जिनमे राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक है और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता।

प्रो० लास्की का कथन है की – “भारत एक प्रजातान्त्रिक देश हैं इसलिए यहाँ सविंधान में मौलिक आधिकार दिए गए है, जिससे व्यक्ति की स्वंत्रता बनी रहेगी और सविंधान उसका सरंक्षण करता रहेगा।”


*भारतीय सविंधान के भाग-3 को भारत का अधिकार पत्र (MAGNACARTA) कहा जाता हैं।

भारतीय सविंधान में मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण सविंधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक किया गया हैं। मूल रूप से सविंधान ने सात मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं—

i. समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

ii. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19–22)

iii. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

iv. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

v. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)

vi. संपति का अधिकार (अनुच्छेद 31)

vii. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

मूल अधिकार सात थे लेकिन 44वे० सविंधान संसोधन अधिनियम 1978, द्वारा सम्पति का अधिकार (अनुच्छेद 31) को मूल अधिकार से हटा दिया गया और इसे सविंधान के भाग-12 में अनुच्छेद 300(a) के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया हैं। इस प्रकार वर्तमान में मौलिक अधिकार 6 भागो में है।

मूल अधिकारों का वर्गीकरण –

1. समता का अधिकार (Rights of Equality) – भारतीय सविंधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 और 18 में समता संबंधी अधिकारों का वर्णन हैं, वे इस प्रकार हैं ---

(क). कानून के सामने समता - (अनुच्छेद 14) – भारत के सभी नागरिक कानून के दृष्टि में एक समान हैं। वे अपने जीवन की सुरक्षा और उन्नति के अवसर न्यायालय द्वारा समान रूप से प्राप्त कर सकते हैं। अतः कानून सभी को समान अधिकार देता हैं।

(ख). सामाजिक समता (Social Equality) – सविंधान के अनुच्छेद 15 में यह स्पस्ट रूप से लिखा हुआ है कि राजजी किसी नागरिक के प्रति केवल धर्म, मूल वंश, जाती, लिंग या जन्म स्थान को लेकर विभेद नहीं करेगा।

(ग). अवसर की समता – राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बंधित विषयों में सभी नागरिको के लिए अवसर की समानता होगी।

(घ). अस्पृश्यता का अंत - अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया हैं। अतः अक्षुत समझी जाने वाली जातियों की उन्नति के लिए विशेष सुविधाए दि गई हैं।

(ड०). उपाधियों का अंत – अनुच्छेद 18 के अनुसार सेवा या विधा संबंधी सम्मान के सिवाए अन्य  कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी। भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है।

2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Liberty or freedom) – भारतीय स्वतंत्रता के अनुच्छेद 19 में मूल संविधान ने सात तरह का उल्लेख था लेकिन वर्तमान में सिर्फ़ 6 है। 44वे संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा अनुच्छेद 19(f) सम्पति का अधिकार हटा दिया गया। 6 तरह की स्वंत्रता का अधिकार –

अनुच्छेद 19(a) – बोलने की स्वंत्रता।

अनुच्छेद 19(b) – शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वंत्रता।

अनुच्छेद 19(c)- संघ बनाने की स्वंत्रता।

अनुच्छेद 19(d)-देश के किसी भी क्षेत्र में आने जाने की स्वंत्रता।

अनुच्छेद 19(e)-देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वंत्रता।

अनुच्छेद 19(g)-कोई भी व्यापार एंव जीविका चलाने की स्वंत्रता।

(a). अपराधों के लिए दोष-सिद्धि के संबंध में संरक्षण – अनुच्छेद 20 किसी भी अभिव्यक्ति या दोषी करार व्यक्ति, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी या कंपनी व क़ानूनी व्यक्ति हो उनके विरुद्ध मनमाने और अतिरिक्त  दण्ड से संरक्षण प्रदान करता है। इसके तहत तीन प्रकार के व्यवस्था है –  

(i). किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ़ एक बार सजा मिलेगी।

(ii). अपराध करने के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी  न की पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत।

(iii). किसी भी व्यक्ति को स्वंय के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।

(b). अनुच्छेद 21 (प्राण एंव दैहिक स्वंत्रता का संरक्षण) – किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वंत्रता का अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

(c). अनुच्छेद 21 (a) शिक्षा का अधिकार - 86 वा संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के तहत अनुच्छेद 21 (a) में शिक्षा का अधिकार को लाया गया जिसमे कि राज्य 6 से 14 वर्ष तक की उम्र  के बच्चो को निशुल्क: एंव अनिवार्य  शिक्षा उपलब्ध कराएगा। इसके निर्धारण राज्य  करेगा।

(d). अनुच्छेद 22 निरोध एवं गिरफ्तारी से संरक्षण

 

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Expolitation) – भारतीय संविधान के अनु. 23 और अनु. 24 के अंतर्गत नागरिक के शोषण के विरुद्ध अधिकार  आते है। अनु. 23 के अनुसार किसी व्यक्ति की खरीद बिक्री, बेगारी तथा इसी प्रकार के अन्य जबरदस्ती लिया हुआ श्रम निषिद्ध ठहराया गया है जिसका उल्लेघन दण्डनीय अपराध है। अनु. 24 (बालको के नियोजन का प्रतिरोध) के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों, खानों या अन्य किसी जिखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।

4. धार्मिक स्वंत्रता का अधिकार (Right of Religious Freedom) – संविधान में अनु. 25 से अनु. 28 धार्मिक स्वंतत्रता का वर्णन किया गया है।

अनुच्छेद 25- (अंत: करण की और धर्म  के अबंध रूप से मनमाने आचरण और प्रचार करने की स्वंतत्रता) : कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म का मान सकता है और उसका प्रचार प्रसार कर सकता है।

अनुच्छेद 26- (धार्मिक कार्यो के प्रबंध की स्वंतत्रता) : व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओ की स्थापना व पोषण करने, विधि-सम्मत सम्पति के अर्जन, स्वामित्व।

अनुच्छेद 27- राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक सम्प्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है।

अनुच्छेद 28-राज्य विधि से पूर्णत: पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायेगी। ऐसे शिक्षण-संस्थान अपने विद्यार्थीयों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को बलात सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते।

5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार – संविधान की 29वी और 30 वी अनुच्छेद में संस्कृत और शिक्षा के अधिकार का वर्णन किया गया है।

अनुच्छेद 29  (अल्पसंख्यक वर्गो के हितो का संरक्षण) – कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जायेगा।

अनुच्छेद 30 (शिक्षा संस्थाओ की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गो का अधिकार) – कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षाणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह की भेदभाव नहीं करेगी।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार- संविधान की धारा 32, 33, 34, और 35 में मौलिक अधिकारों की रक्षा की व्यवस्था का उल्लेख किया गया है क्योकि संविधान में मौलिक अधिकार के उल्लेख मात्र से ही नागरिक उनका उपयोग नहीं कर सकते। उनकी रक्षा का भी व्यवस्था होनी चाहिए नहीं तो ये सब अधिकार संविधान के पननों में ही रह जायेंगे। इसके लिए यह आवश्यक है कि मौलिक अधिकारो के प्रयोग करने और उनकी रक्षा करने के लिए समुचित संवैधानिक प्रबंध किया जाय।

इस प्रकार हम कह सकते है कि भारतीय मूल की रक्षा के लिए मौलिक अधिकारों का होना अतिआवश्यक है।