भारतीय सविंधान की प्रमुख विशेषताओ का वर्णन करें ।

(Describe the Salient Features of the Indian Constitution)

भूमिका – भारतीय सविंधान का निर्माण भारत के लोगो के द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से निर्मित किया गया हैं। जिसकी मूल भावना भारत के नागरिको में भारत के संप्रभुता को स्थापित करना हैं। भारत की लोकप्रिय संप्रभुता भारत की जनता में निहित हैं। विश्व के लोकतांत्रिक देशो के सविंधान से मानवीय तत्वों के सर्वभौमिक मनवाधिकार के संरक्षण से संबंधित उपबंधो को भारत के सविंधान में प्रतिष्ठित किया गया हैं। इसलिए यह भारत का सविंधान दुनिया का सबसे वृहद् एवं  स्पष्ट सविंधान हैं । जिसकी निम्नलिखित विशेषताए हैं -


1. लिखित एवं निर्मित सविंधान – भारत का सविंधान लिखित दस्तावेज हैं । इसका समय -समय पर निर्माण एवं विकास हुआ हैं। मूल रूप से सविंधान में 1 प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद (22 भागो में विभक्त) और 8 अनुसूचियां थी। वर्तमान में 465 अनुच्क्षेद (25 भागो में विभक्त) और 12 अनुसूचियां हैं। यह अपने स्वभाव में कठोर एवं लचीला सविंधान का समन्वय है।

2. लोकप्रिय संप्रभुता पर आधारित सविंधान हैं – भारत का सविंधान जनता के द्वारा निर्मित सविंधान हैं और स्वीकृत भी हैं। भारत के सविंधान के प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया हैं कि “हम भारत के लोग, भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राज्य बनाने की लिए” अर्थात यह वाक्य अपने आप में ही प्रमाण हैं कि भारत की संप्रभुता जनता निहित और लोकप्रिय हैं। 26 JAN 1950 ई० को भारत को गणराज्य बन जाने के साथ ही इस सविंधान को अपना लिया गया। इस सविंधान के द्वारा अंतिम शक्ति भारतीय जनता को प्रदान की गयी है।

3. समाजवादी – भारतीय राज्य की प्रकृति समाजवादी होगी। लोक कल्याणकारी योजनाऍ राज्य को समाजवादी प्रकृति का स्वरुप प्रदान करती हैं।

4. धर्मनिरपेक्षता – भारत के सविंधान की विशेषता इसकी धर्मनिर्पेक्षेता हैं जिसके अनुसार राज्य का अपना कोई राष्ट्रिय धर्म नही होगा। राज्य सभी धर्मो को एक सामान देखेगा। धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नही होगा।

5. लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली – भारत में शासन व्यवस्था जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से संचालित होगा। शासन का निर्धारण जनता अपनी व्यस्क मताधिकार के माध्यम से करेगी।

6. संसदीय शासन प्रणाली – भारत के शासन व्यवस्था का मूलस्वरूप संसदीय होगा जिसमे सरकार अपने कार्य एवं दायित्व के लिए जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि सदन के प्रति जिम्मेदार एवं जवाबदेह होगी। यह संसदीय व्यवस्था शासन प्रणाली कहलाएगी। इसका उदाहरण केंद्र में सरकार संसद के प्रति एवं त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली में जिला परिषद् नगर, परिषद् ग्राम कचहरी एवं ग्राम सभा के प्रति क्रमशः जिम्मेदार एवं जवाबदेही होगी। उपरोक्त सभी जवाबदेही एवं जिम्मेदारीयाँ जनता के प्रति और जो संसदीय प्रणाली के लक्षण हैं।

*गणराज्य – 26 JAN 1950 को भारतीय सविंधान को लागु हो जाने के पश्चात भारत एक गणतांत्रिक राज्य बन गया। जिसके अनुसार भारत का राष्ट्राध्यक्ष जनता के द्वारा अप्रत्यक्ष मतदान प्रणाली द्वारा निर्वाचित होगा। भारत के राष्ट्र का अध्यक्ष वंशानुगत नहीं हो सकता।

7. संघात्मक शासन प्रणाली – भारतीय सविंधान का बाह्य स्वरुप संघात्मक हैं लेकिन उसका आंतरिक स्वरुप एकात्मक हैं। भारत का सविंधान एकल नागरिकता का प्रवाहन करता हैं जो की संघीय लक्षण नही हैं। पुरे भारत के लिए एक सविंधान, राज्यपालों की नियुक्ति केंद्र द्वारा करने के कारण एकात्मक दिखाई देता हैं। इसके बावजूद कार्य एवं क्षेत्राधिकार शक्तियों के विभाजन के आधार पर संघात्मक प्रतीत होता हैं।

8. न्यायपालिका की सर्वोच्चता एवं संसद की सर्वोच्चता का मिश्रण – भारत में न्यायपालिका को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसे सविंधान का संरक्षक एवं व्याखाकार की शक्ति प्राप्त है। यह संसद के द्वारा बनाये गये कानूनों का न्यायिक पुनः विलोकन कर सकता हैं। यह अधिकार उसे सर्वोच्च बनती है परन्तु सर्वोच्च न्यायलय के किसी भी फैसले को संशोधित करने का अधिकार संसद को प्राप्त हैं यह दोनों प्रकार के लक्षण संसद एवं सर्वोच्च न्यायलय की श्रेष्ठता का समन्वय हैं।

9. एकल नागरिकता – भारत का सविंधान भारत के नागरिको एकल नागरिकता प्राप्त करता हैं जबकि अमेरिका का सविंधान दोहरी नागरिकता को प्राप्त कराता हैं।

उपरोक्त सभी लक्षण भारतीय सविंधान की विशेषता एवं प्रकृति को स्पस्ट करते हैं।