नागरिको के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायलय द्वारा जारी किए जाने
वाले लेख (उदेश्य)
सविंधान में
मौलिक अधिकारों का वर्णन कर देना ही काफी नहीं हैं, इनकी सुरक्षा के उपायों की
व्याख्या भी उतना ही आवश्यक हैं। अतः सविंधान के अनुच्छेद 32 तथा 226 के तहत सर्वोच्च न्यायलय रिट (writ) जरी कर सकती हैं जैसे – बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश,
प्रतिषेध, उत्त्प्रेषण एवं अधिकार पृच्छा। मौलिक अधिकरो को संरक्षण प्रदान की
दृष्टि से निम्नलिखित लेख (Writ) न्यायलय को जारी करने का अधिकार दिया गया हैं।
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख (Writ of Habeas Corpus) – इसे लैटिन भाषा से लिया गया हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ होता हैं “को प्रस्तुत
किया जाए” यह उस व्यक्ति के सम्बन्ध में न्यायलय द्वारा जारी आदेश हैं, जिसे दुसरे
द्वारा हिरासत में रखा गया हैं, उसे इसके सामने प्रस्तुत किया जाए। तब न्यायलय
मामले की जाँच करता हैं, यदि हिरासत में लिए गये व्यक्ति का मामला अवैध हैं तो उसे
स्वतंत्र किया जा सकता हैं। इस तरह यह किसी व्यक्ति को जबरन हिरासत में रखने के
विरुद्ध हैं।
2. परमादेश लेख (Mandamus) – इस लेख का शाब्दिक
अर्थ हैं – “हम आदेश देते हैं” (We Command) । इस लेख का उदेश्य आधिकारियो को विवाधित
दायित्व के निर्वाहन का आदेश देना हैं तथा मौलिक आधिकारो का आक्रमण से बचाना हैं।
इस लेख द्वारा किसी व्यक्ति या संस्था को अपने कर्तव्य का पालन तथा सार्वजनिक दायित्वो
एवं कर्तव्यो को लागू करने का आदेश दिया जाता है। इसके अलावा सार्वजनिक दायित्वो
एवं कर्तव्यो का पालन करने पर आवेदनकर्ता न्यायलय द्वारा परमादेश जारी करवा सकता
हैं।
3. प्रतिषेध लेख (Prohibition) – इसका शाब्दिक
अर्थ “रोकना” हैं। इसे किसी उच्च न्यायलय द्वारा अधीनस्थ न्यायलयो को या अधिकरणों
को अपने न्यायक्षेत्र से उच्च न्यायिक कार्यो को करने से रोकने के लिए जारी किया
जाता हैं। जिस तरह परमादेश सीधे सक्रीय रहता हैं, प्रतिषेध सीधे सक्रीय नहीं रहता।
4. उत्त्प्रेषण लेख (Writ of Certiorary) – इसका शाब्दिक अर्थ “प्रमाणित होना” या “सुचना देना” हैं। इस लेख द्वारा किसी
निम्न न्यायलय या अर्द्धन्यायिक अधिकारी को उसके समक्ष विचारार्थ पड़े किसी मुकदमे
को ऊपर के न्यायलय में भेज देने का आदेश दिया जाता हैं इसका प्रयोग उस समय किया
जाता हैं। जबकि निम्न न्यायलय के अधिकार क्षेत्र से कोई मुकदमा बाहर हो या उस
न्यायलय में न्याय के दुरूपयोग का भय हो।
5. अधिकार पृच्छा (Quo-Warranto) – इसका शाब्दिक अर्थ हैं – “किस आधार से” (By What Authority) । इसे न्यायलय
द्वारा किसी व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक कार्यालय पर दायर (Complaiin) अपने दावे की
जाँच के लिए किया जाता हैं। अतः यह किसी व्यक्ति द्वारा लोक कार्यालय के अवैध
अनाधिकार ग्रहण करने को रोकता हैं।
सवैंधानिक
उपचारों के अधिकारों का महत्व इस तथ्य में हैं कि यह अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों
के उल्लघंन को रोकने में एवं उनको लागू करवाने में एक महत्वपूर्ण कानूनी साधन हैं।
0 Comments