भारतीय संविधान द्वारा नागरिको के मौलिक कर्तव्य का वर्णन

भारतीय सविंधान में मूल कर्तव्यों को पूर्व रुसी संविधान से प्रभावित होकर लिया गया हैं। रूस के संविधान में घोषणा कि गई है की नागरिको के अधिकार प्रयोग एवं स्वंतत्रता उनके कर्तव्यों एवं दायित्वों के निष्पादन से अविभाज्य हैं। अनुच्छेद 51(क) के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा की वह : -


1). संविधान का पालन करें और उसके आदेशो, संस्थाओ, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें

2). स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदेशो को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें।

3). भारत की संप्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें।

4). देश की रक्षा करें और आह्णन (बुलावा) किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।

5). भारत के सभी लोगो में समरसता (समांजस्य) और भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो।

6). हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करें।

7). प्राकृतिक पर्यावरण की,जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका सवंर्धन करें तथा प्राणि मात्र के प्रति दया भाव रखें।

8). वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधर की भावना का विकास करें।

9). सार्वजनिक सम्पति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहें।

10). व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाईयों को छू ले।

11). 6 से 14 वर्ष के उम्र के बीच अपने बच्चो को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। यह कर्तव्य 86वें सविंधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा जोड़ा गया।


* मूल कर्तव्यों की विशेषताऍ

निम्नलिखित बिंदूओं को मूल कर्तव्यो की विशेषताओ के सन्दर्भ में उल्लेखित किया जा सकता हैं -

1). उनमे से कुछ नैतिक कर्तव्य है तो कुछ नागरिक। उदाहरण के लिए स्वंतत्रता संग्राम के उच्च आदर्शो का सम्मान एक नैतिक दायित्व हैं जबकि राष्ट्र ध्वज एवं राष्ट्र गान का आदर करना नागरिक कर्तव्य ।

2). ये मूलतः भारतीय जीवन पद्धति के आंतरिक कर्तव्यों का वर्गीकरण हैं।

3). कुछ मूल आधिकार जो सभी लोगो के लिए हैं चाहे वे नागरिक हो या विदेशी, लेकिन मूल कर्तव्य केवल नागरिको के लिए है न कि विदेशियों के लिए ।   

* मूल कर्तव्यों की आलोचना

मूल कर्तव्यों की आलोचना निम्नलिखित आधार पर की जाती हैं -

1). कर्तव्यों की सूची पूर्ण नहीं हैं क्योकि इनमे कुछ अन्य कर्तव्य जैसे – मतदान, कर अदायगी, परिवार नियोजन आदि समाहित नहीं हैं।

2). कुछ कर्तव्य अस्पष्ट, बहुअर्थी (अनके अर्थ वाला) एवं आम व्यक्ति के लिए समझने में कठिन हैं। उदाहरण के लिए विभिन्न शब्दों की भिन्न व्याख्या हो सकती हैं ‘उच्च आदर्श’, ‘सामासिक संस्कृति’, ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ आदि।

3). दण्डात्मक व्यवस्था का अभाव – स्वर्ण सिंह समिति ने सुझाव दिया था की मौलिक कर्तव्यो की अवहेलना करने वाले को दण्ड दिया जाए और उनके लिए संसद उचित कानूनों का निर्माण करें।

4). आलोचकों ने कहा हैं कि सविंधान के भाग IV में इनको शामिल करना, मूल कर्तव्यों के मूल्य व महत्व को कम करती हैं। उन्हें भाग तीन के बाद जोड़ा जाना चाहिए था ताकि वे मूल अधिकार के बराबर रहते।