Public Debt (सार्वजनिक ऋण)
Prof. Findley Shiraas के अनुसार –“राष्ट्रीय ऋण
वह ऋण है जिसे एक राज्य को अपनी प्रजा अथवा अन्य देशों के नागरिक को वापस लौटना है।”
J. K. Mehta के अनुसार –“सार्वजनिक ऋण एः ऋण है
जिसे सरकार उन व्यक्तियों(संस्थओं) को लौटना के लिए बाध्य है जिनसे उसने ऋण लिया
है।”
सार्वजनिक ऋण का वर्गीकरण (Classification of Public Debt)
सार्वजनिक ऋण को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत
किया जा सकता है –
1. आन्तरिक एंव बाह्य ऋण (Internal and External)
– आन्तरिक ऋण से आशय उन सार्वजनिक ऋणों से है जो
देश के अन्दर से ही प्राप्त किये जाते है जबकि बाह्य ऋण एक देश के विदेशी सरकार
अथवा विदेशी नागरिको व संस्थाओं द्वारा प्राप्त किया जाता है। इस समय भारत सरकार
की बाह्य ऋण अंतराष्ट्रीय वितीय संस्थाओं जैसे World Bank, IMF, मित्र विदेशी
सरकार तथा अंतराष्ट्रीय बाजार से ले सकती है जबकि आंतरिक ऋण, रिज़र्व बैंक, वितीय
संस्था या बड़े उधोगपति से ले सकती है।
2. उत्पादक एंव अनुत्पादक ऋण (Productive and
Unproductive Debt) – उत्पादक ऋण वह ऋण
होते है जो सरकार की आय बढ़ाने वाली परियोजनओं पर व्यय किये जाये है। जैसे – रेलवे निर्माण,
सिचाई योजनाए एंव विधुत लोहा तथा उर्वरक आदि। दूसरी ओर अनुत्पादक ऋण वह ऋण है जिससे कोई
आय प्राप्त नहीं होती है। वास्तव में ऐसे ऋण देश की उत्पादक क्षमता को नहीं बढ़ाते। उदाहरण – युद्ध के खर्चो के लिए लिया गया ऋण अनुत्पादक होता है। उसी
प्रकार अकाल एंव सुखा पीड़ित लोगो को राहत पहुँचाने के लिया गया ऋण भी अनुत्पादक
होता है।
3. विमोच्च एंव अविमोच्च ऋण (Redeemable and Irredeemable
Debt) – विमोच्च ऋण वह होते है जिनको सरकार भविष्य में
किसी तिथि पर वापस करने का वचन देती है इसक विपरीत अविमोच्च ऋण वह ऋण है जिसकी मूल
राशि सरकार द्वारा कभी वापस नहीं की जाती यधपि सरकार इस राशि पर नियमित रूप से
ब्याज देती है। विमोच्च ऋण का भार वर्तमान पीढ़ी पर होता है जबकि अविमोच्च ऋण का भार
भावी पीढ़ी पर होता है। अत: सार्वजनिक ऋण लेंते समय विमोच्च ऋण की तुलना में
अविमोच्च ऋण की प्राथमिकता दी जाती है क्योकि इसमें भुगतान की सुविधाजनक प्रणाली उपलब्ध
होती है।
4. अल्पकालीन एंव दीर्धकालीन ऋण (Short Term and Long Term Debt) – अल्पकालीन ऋण वह ऋण है जो 3-9
महीनों के समय में परिपक्व(Mature) हो जाता है। ऐसी वापस करने योग्य राशियों पर
ब्याज प्राय: कम होता है। दूसरी ओर दीर्धकालीन ऋणों का लम्बे समय के अन्दर भुगतान
होता है। जैसे दस वर्षो के पश्चात् अथवा उससे भी अधिक। इस प्रकार के ऋणों पर ब्याज
की दर अधिक होती है।
5. कोषित एंव अकोषित ऋण (Funded and Unfunded
Debt) – कोषित ऋण प्राय: दीर्धकालीन ऋण होता है जो एक
वर्ष बाद चुकता करने योग्य होता है। दुसरे शब्दों में यह निश्चित काल का ऋण होता
है जिसकी वापसी का एक उचित समक्षौता तैयार किया जाता है। इसके विपरीत अकोषित ऋण वह
है जो एक वर्ष के अन्दर चुकता कर दिए जाते है खजाने के बांड अकोषित ऋण है क्योकि वह
तीन से छ: महीने के लिए होते है तथा एक वर्ष से लम्बे समय के लिए नहीं होता।
अकोषित ऋण प्राय: बजटों के अस्थायी अंतरालो को पूरा करने के लिए जाते है।
6. ऐच्छिक और बलात ऋण (Valuntary and Compulsory
Debt) – सरकार ऋण वह ऋण है जो बिना किसी कानूनी प्रवर्तन
दिए जाते है। इसका अर्थ है जब लोग स्वेच्छा से सरकारी ऋणों में योगदान करते है।
वास्तव में यह ऋण को अपनी इच्छा योग्यता एंव सुविधा अनुसार दिए जाते है जबकि बलात
ऋण का अर्थ शक्ति के प्रयोग से ऋणों की प्राप्ति। परंतु आधुनिक प्रजातांत्रिक समाज
में यह ऋण बहुत अलोकप्रिय है।
7. विक्रय योग्य एंव अविक्रय योग्य (Marketable
and Non-Marketable Debt) – विक्रय योग्य ऋणों
वह ऋण है जिसमे ऋण पत्र खुले बाजार में बेचे जा सकते है जबकि अविक्रय योग्य ऋण वह
ऋण है जहाँ ऋण पत्रों को स्टॉक – एक्सचेंज बाजार में बेचा नहीं का सकता। इसका
मुख्य लक्ष्य उनके मूल्यों में उतार-चढ़ाव को रोकना होता है।
8. सकल तथा शुद्ध ऋण (Gross and Net Debt) – सकल ऋण में किसी भी समय अवशेष ऋण की पूरी राशि सम्मिलित होती है जबकि
शुद्ध ऋण में से डूबा कोष अथवा ऋण वापसी के लिए रखी गई अन्य संपति घटाने के बाद
बची शेष राशि होती है।
सार्वजनिक ऋण के उदेश्य तथा महत्व (Objective
and Importance of Public Finance) –
1. व्यय औए आय में संतुलन बनाये रखने के लिए (For Maintenance of Balance between Expenditure) – जब भी सरकार की आय उसके व्यय से कम पड जाती है तो सरकार आंतरिक एंव बाहरी
स्त्रोतों से ऋण से सकती है। सरकार की यह आय करों तथा अन्य राजस्व के साधनों से
प्राप्त आय के अतिरिक्त होती है। अत: इसका भुगतान करों तथा अन्य साधनों से करना
होता है। सरकार आकस्मिक आपदाओं से निपटने के लिए भी आंतरिक एंव बाहरी स्त्रोत से
ऋण लेती है।
2. मंदी का समाना करने के लिए (Fighting Depression) – मंदी का अर्थ है गिरती हुई कीमतों की प्रतियोगिता, उत्पादन
गतिविधियों में ढील तथा अर्थव्यवस्था में लाभ पूर्ति की कोई आशा न होना। मंदी की
बुराइयों के उन्मूलन के लिए सार्वजनिक ऋण वितीय प्रबंध का बहुत महत्वपूर्ण उपकरण
है।
3. आर्थिक विकास हेतु वित प्रबंधन (Financing Economic Development) – अल्पविकसित
देश सदा ही कोष की समस्या का सामना करते है। इन देशों की कर देय क्षमता बहुत कम
होती है। इसके अतिरिक्त यदि भारी कर लगाये जाते है तो जनता इनका विरोध करती है
परन्तु अर्थव्यवस्था को निर्धनता के कुचक्र से बचाने के लिए वित का प्रबंध बहुत
आवश्यक है। ऐसी स्थिति में सरकार के पास केवल सार्वजनिक ऋण का मार्ग ही शेष रह
जाता है। सरकार आतंरिक तथा बाह ऋण ले ककर विकास पर व्यय करती है।
4. अभूतपूर्व खर्चों से निपटने के लिए (To meet unprecedent Expenses) – कोई बार
सरकार को अभूतपूर्व परिस्थितियों से संबंधित खर्चो से निपटने के लिए ऋण लेने पड़ते
है जैसे अकाल, बाढ़, भूकम्प और महामारी की स्थिति मे। अत: ऐसे संकटकाल में सरकारी
व्यय विपति काल में सरकारी व्यय अधिक हो जाने के कारण सार्वजनिक ऋण लेना पड़ता है।
5. कर प्रणाली का अलोकप्रिय होना (Unpopularity of Taxation) – लोग सरकार को
कर देने के पक्ष में नहीं होते। प्रत्येक का जनता विरोध करती है। वह पुराने
करों की दरें को बढ़ाने तथा नये कर लगाने का विरोध करती है। ऐसी परिस्थिति में सरकार
लोगों के विरोध से बचने के लिए सार्वजनिक ऋण का सहारा लेती है।
6. सार्वजनिक उधमो को वित प्रदान के लिये (To Finance Public Enterprises) –
सार्वजनिक क्षेत्र सीधे सरकारी नियंत्रण में होता है और आर्थिक विकास और समृद्धि में मुख्य भूमिका निभाता है। सार्वजनिक उधमो की वितीय सहायता के लिए सरकार ऋण ले
सकती है। इन कार्यो के लिए केवल करारोपण पर्याप्त नहीं होता इसलिए आधुनिक सरकारे
व्यापक रूप से ऋणों का आश्रय लेती है।
7.साधनों को उतम आबंटन के लिए (For Better Allocation of Resources) – साधनों को
दुरपयोग से बचाने के लिए सरकार साधनों के वर्तमान स्तर को अनुकूलतम स्तर पर रखने का
प्रयास करती है। साधनों का त्रुटिपूर्ण प्रयोग प्राय: एकाधिकारी प्रतियोगिता के
कारण उत्पन्न होती है। सरकार साधनों के त्रुटिपूर्ण निर्धारण को रोकने के लिए या
तो इन एकाधिकारो फर्मो को उत्साहित करती है। इन सभी कार्यो के लिए सरकार को
दीर्धकालीन वित की आवश्यकता होती है।
8. शिक्षा एंव लोक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार (Expansion of Education and Public Health) –
आधुनिक सरकारे कल्याणकरी सरकारे है जो शिक्षा एंव स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार का
दायित्व निभाती है जिससे लोगों की कार्यकुशलता में सुधार होता है। इन कार्यो के
लिए सरकार प्राय: आंतरिक एंव बाहरी स्त्रोतों से ऋण लेती है।
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