Public Finance

Introduction of Public Finance (लोक वित का अर्थ) 

लोक वित का अर्थ सार्वजनिक आधिकारियों (Public Authority) या राज्य के लिए किया जाता है जिसमे सभी प्रकार की सरकारे सम्मिलित की जाती है अर्थात यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक वित का संबंध केंद्र राज्य या सार्वजनिक सभी प्रकार कि सरकारे के आय-व्यय से हैं |
Prof. Dalton के अनुसार – “लोक वित का संबंध लोक सताओ की आय-व्यय से तथा इन दोनों के परस्पर समायोजन से हैं।
Prof. Findlay Shirras के अनुसार – "सार्वजनिक आधिकारियों या सता (Public Authority) द्वारा साधनों की प्राप्ति एंव व्यय से संबंधित सिद्धांतों का अध्ययन ही लोक वित कहलाता हैं।"
Prof. Lutz के अनुसार – "लोक वित उन साधनों की व्यवास्था, सुरक्षा और वितरण की व्यवास्था करता हैं जो कि राजकीय अथवा प्रशासनिक कार्यो के संचालनर्थ आवयश्क होते है।"        
A. G. Buehler के अनुसार – "सार्वजनिक वित के क्षेत्र मे शासन के व्यय, ऋण एंव अन्य विधियों से प्राप्त होने वाली आय तथा वितीय प्रशासन को शामिल किया जाता है।"

सार्वजनिक वित का विषय क्षेत्र (Scope of Public Finance)

लोक वित के संबंध मे Mrs. Ursula Hicks ने कहा है कि- "सार्वजनिक वित मे मुख्ताया उन साधनों का विश्लेषण एंव परीक्षण निहित है जिनके द्वारा राज्य संगठन समूहिक मांग को पूरा करते है तथा अपने लक्ष्यो की प्राप्ति के लिए पर्याप्त धन राशि प्राप्त करते हैं।"

लोक वित की विषय वस्तु निम्नलिखित हैं –
1. सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure) - सार्वजनिक व्यय से अभिप्राय उन सब खर्चो से है जिन्हे किसी देश की केन्द्रीय राज्य तथा स्थानीय सरकारो अपने प्रशासन, सामाजिक कल्याण, आर्थिक विकास तथा अन्य देशो की सहायता के लिए करती हैं।
2. सार्वजनिक आय (Public Revenue) - सार्वजनिक आय का संबंध आय प्राप्ति के साधनों के सिद्धांतों तथा उनकी समस्याओ से हैं | करो से प्राप्त होने वाली सभी प्रकार की आय तथा सार्वजनिक जमा से होने वाली प्राप्तियो को सार्वजनिक राजस्व मे सम्मिलित किया जाता हैं। यह सार्वजनिक  राजस्व के विभिन्न स्त्रोतों जैसे करो व शुल्कों इत्यादि का भी अध्ययन किया जाता हैं।
3.  सार्वजनिक ऋण (Public Debt) सार्वजनिक सता या कोई भी प्रकार अपनी समान्य आय मे किसी भी कमी को पूरा करने के लिए ऋण के द्वारा आय एकत्रित करती हैं; सार्वजनिक ऋण कहलाती हैं। किसी एक विशेष वर्ष मे सरकार द्वारा एकत्रित किया गया ऋण सार्वजनिक सता की प्राप्तियो हिस्सा होता हैं।
4. वितीय प्रशासन (Financial Administration) - वितीय प्रशासन सरकार की वितीय आवश्यकताओ का ऐसा प्रबंधन है जिसमे सार्वजनिक व्यय संबंधी जरूरतो और उनकी पूर्ति की एक उत्तरदायित्व पूर्ण व्यवस्था पाई जाती है। वितीय प्रशासन के अंतर्गत  बजट तैयार करने की पूरी प्रक्रिया, बजट प्रस्सतुत करना व पास करना, लागू करना तथा उसका मूल्याकन करना इत्यादि विषय शामिल हैं।
5. संघीय वित (Federal Finance) आधुनिक युग मे संघीय वित का महत्व बढ़ गया हैं। संघीय वित केंद्र तथा राज्यो के बीच वित का विभाजन करता है। अत: लोक वित के इस भाग मे संघ सरकार के बीच आपसी वितीय संबंधो, वितीय साधनों का विभाजन तथा वितीय समायोजन आदि विषय का अध्ययन किया जाता हैं।
6. आर्थिक संतुलन (Economic Stability) - लोक वित के इस भाग मे सरकार द्वारा देश मे आर्थिक स्थिरता लाए जाने के लिए किए गए तथा अन्य उपायो व विभिन्न आर्थिक नीतियो वर्णन का किया जाता हैं। 

लोक वित व निजी वित मे अंतर (Difference Between Public Finance and Private Finance)

निजी वित मे हम व्यक्ति या निजी कंपनी के ऋण, आय-व्यय का अध्ययन करता है तथा सार्वजनिक वित का संबंध सरकार की आय-व्यय और ऋण से है। फिर भी लोक वित निजी वित मे अंतर पाया जाता है जो निम्नलिखित हैं –
  1. आय एंव व्यय का समायोजन (Adjustment of Income and Expenditure) - सार्वजनिक वित एंव निजी वित मे प्रमुख अंतर आय व व्यय के समायोजन को लेकर हैं। व्यक्ति अपने आमदनी के अनुसार ही अपने खर्च को निश्चित करता है। परंतु राज्य पहले अपने व्यय की रकम निश्चित करती हैं और तब उसके अनुसार आय प्राप्त करती हैं। Prof. Dalton के अनुसार – "एक व्यक्ति अपने आय के अनुसार व्यय को निश्चित करता हैं। एक राजकीय संस्था अपनी आय को व्यय के अनुसार निश्चित करता हैं।"
  2. बजट मे अंतर (Budgeting Difference) - बजट के संदर्भ मे भी सार्वजनिक व्यय तथा निजी व्यय मे अंतर होता है। सार्वजनिक वित मे घाटे का बजट (Deficit Budget) को अवांछित माना जाता है जबकि आर्थिक विकास की अवस्था या शुद्ध की स्थिति मे सरकार को कई वर्षो के घाटे का बजट बनाना उपयोगी  हो सकता है। व्यक्ति के लिए अधिक्य बजट (Surplus Budget) बनाना अच्छा होता है क्योकि इसमे व्यक्ति बचत करके पूंजी निर्माण कर सकता हैं।
  3. गोपनियता मे अंतर (Dissimilarities in Secrecy) - गोपनियता के संदर्भ मे निजी व सार्वजनिक वित मे असमानता है। व्यवसायियों का यह प्रयत्न होता हैं की वह अपनी वितीय स्थिति के बारे मे अन्यों को सूचना न दे जबकि सरकार अपनी व्यय संबंधी योजनाओ का बहुत प्रचार करती हैं। जनता को सरकार की नीति का जानने का अधिकार हैं। 
  4. उदेश्यो मे अंतर (Difference in Aim) - आय व व्यय का लेखा तैयार करते समय व्यक्ति या सरकार के उदेश्यो मे अंतर पाया जाता हैं। व्यक्ति का मुख्य उदेश्य निजी स्वार्थ होता हैं और उसे ही ध्यान रखकर वह व्यय करता हैं। दूसरी और राज्य का मुख्य उदेश्य अधिकतम सामाजिक लाभ की प्राप्ति करना हैं। सरकार जब व्यय करती हैं तो उसका उदेश्य यही होता हैं कि इससे राष्ट्रीय विकास मे योगदान मिले न की व्यक्तिगत विकास में।
  5. आय व व्यय की लोच (Elasticity of Income and Expenditure) सरकारी आय व व्यय व्यक्तिगत आय व व्यय की तुलना मे अधिक लोचदार होते हैं सरकार की आय के साधन प्राय: अधिक लोचदार होते हैं किंतु व्यक्ति की आय के साधन अधिक बेलोचदार होते है।
  6. भविष्य की आवश्यकताओ मे अंतर (Long term Consideration) - निजी व सार्वजनिक निवेश मे अन्य मूलभूत अंतर है भविष्य की आवश्यकताओ के लिए प्रावधन रखना। निजी कंपनीयों अथवा व्यक्ति व्यवसाय के उन क्षेत्र मे अधिक निवेश करते है जहाँ शीध्र अधिक लाभ की प्राप्ति होती है परंतु सरकार वर्तमान के बारे मे न सोचकर भविष्य के बारे मे सोचती हैं और कार्य करती हैं। इसलिए सरकार कुछ व्यय भविष्य के लिए करती हैं।
  7. समय की अवधि (Period of Time)व्यक्ति किसी खास समय के लिए अपना बजट तैयार नही करता अर्थात उसके आय व व्यय की कोई खास अवधि नही होती है किंतु सरकार प्राय: एक वर्ष के बजट तैयार करती हैं। इस अवधि मे प्राय: सरकार अपनी आय व व्यय मे संतुलित स्थापित करती है लेकिन व्यक्ति के लिए समय का कोई महत्व नही रखता वह आय प्राप्त करता हैं और उसे व्यय करता है। 

विकासशील अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका (Role of Public Finance in Developing Country)

आधुनिक आर्थिक विश्लेषण में सार्वजनिक वित के अध्धयन को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है पुराने समय मे राज्य का मुख्य उदेश्य कानून तथा सुरक्षा की व्यवस्था बनाए रखने के लिए धन संग्रह करना था। इसके विपरीत आज प्रत्येक राज्य व सरकार का उदेश्य सामाजिक कल्याण सुनिशिचित करना है। 
लोक वित की क्रियाए विकसित तथा विकसशील देशो में निवेश को प्रोत्साहित करने, आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहित करने तथा संपति के समवितरण हेतु प्रतिपादित की जाती है। 
  1. विकासशील अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका – बजट व निवेश की दर को बढ़ना – अल्पविकसित तथा विकासशील देश की उन्नति की सबसे बड़ी बाधा है - वितीय स्त्रोत। बचत घटने तथा उपभोग बढ़ाने के बहुत से उत्तरदायी तत्व है। उच्च आय वर्गो के लोगो विलासिता वाली वस्तुओ पर अधिक व्यय करते है। इसके अतिरिक्त आय का अधिक भाग सोना व आभूषण इत्यादि वस्तुओ पर खर्च करते हैं। इन अनुत्पादक वाली वस्तुओ पर अधिक कर लगाकर इन्हे रोकने का प्रयास करना चाहिए साथ ही साथ व्यक्तिगत आय तथा निगम आय पर अधिक कर लगाना चाहिए। The Economist Bulletin of Asia & the Far Fast के अनुसार - "करधान ही एक ऐसा प्रभावशाली माध्यम है जिसमे निजी उपभोग व निवेश को घटाया जा सकता है और आर्थिक विकास के लिए सरकार को धन उपलब्ध कराया जा सकता है।" 
  2. धन एंव आय का समान वितरण सुनिश्चित करना - धन तथा आय का समान वितरण अल्पविकसित देश की सबसे बड़ी समस्या है अमीर लोग अधिक अमीर और गरीब लोग अधिक गरीब होते जा रहे हैं। ये स्थिती इन राष्ट्रो के विकास मे अवरोधक उत्पन्न करती है। कुछ सीमा तक प्रगतीशील प्रत्यक्ष कर तथा विलासीता वाली वस्तुओ पर ऊचे कर लगाकर तथा सरकार अनेक क्षेत्रो मे निवेश करके गरीबो की आय बढ़ा सकता है। इसके परिणाम स्वरूप रोजगार तथा उत्पादन के स्तर मे भी वृद्धि होगी। 
  3. मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण – अल्पविकसित राष्ट्रो मे वास्तविक साधनो की मांग एंव पूर्ति का असंतुलन मुद्रा स्फीति को जन्म देती है। मुद्रा स्फीति से इन राष्ट्रो मे आर्थिक व राष्ट्रीय विकास की सारी प्रक्रिया रुक जाती है और सारी आर्थिक संरचना नष्ट हो जाता है। इसलिए मुद्रा स्फीति को रोकने के लिए सरकार बजटीय नीति अपनाकर इस पर नियंत्रण करती है।
  4. पूंजी निर्माण - हम जानते है की किसी भी देश मे विकास पूंजी निर्माण की दर पर निर्भर करता है। इसलिए सार्वजनिक वित का पहला आवश्यक लक्ष्य है पूंजी निर्माण का संवर्धन। पूंजी निर्माण एक प्रभावी तथा सुनियोजित करारोपण नीति द्वारा बढ़ाया जा सकता है। 
  5. साधनो का अनुकूलतम उपयोग – अल्पविकसित तथा विकसशील देश दुर्लभ तथा सीमित साधनो का उपयोग न करने अथवा उनके नष्ट होने की समस्या का सामना कर रहे है। इस मौलिक समस्या का समाधान उपलब्ध साधनो के अनुकूलतम उपयोग मे निहित है जो उचित मौद्रिक एंव राजकोषीय नीति के अनुपालन द्वारा संभव है।