सार्वजनिक व्यय के विभिन्न सिद्धांत (Different Cannon of Public Expenditure)
सार्वजनिक व्यय के सिद्धांत वे मूलभूत सिद्धांत/नियम है जिन्हे राज्य प्राधिकरण की व्यय नीति का निर्देशन करना चाहिए। वास्तव मे सार्वजनिक व्यय के सिद्धांत व्यय की कुशलता और उपयुक्तता का निर्धारण करते है। प्रो. शिराज ने सार्वजनिक व्यय के सिद्धांत के सुझाव मे महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
सार्वजनिक व्यय के सिद्धांत (Cannon of Public Expenditure) –
1. लाभ का सिद्धांत (Cannon of Benefit) – इस सिद्धांत से यह तात्पर्य है कि सार्वजनिक
व्यय का उदेश्य अधिकतम सामाजिक लाभ की प्राप्ति करना होना चाहिए तथा सरकारी व्यय इस
तरीके से होना चाहिए कि उसका देश के उत्पादन पर अच्छा प्रभाव पड़े। Prof. Findlay Shirras ने लिखा है कि
“अन्य बाते समान रहने पर सार्वजनिक व्यय इस प्रकार कि होनी चाहिए कि इससे महत्वपूर्ण
सामाजिक लाभ प्रपट हो, जैसे उत्पादन मे वृद्धि, संपूर्ण समाज की बाह आक्रमण तथा आंतरिक अशांति से रक्षा तथा की विषमताओ मे
कमी”। अत: इस नियम के अनुसार सार्वजनिक व्यय इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे सार्वजनिक
निधि किसी एक व्यक्ति अथवा विशेष समूह के लिए नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज के हित के लिए
व्यय हो। यह सिद्धांत अधिकतम कुल लाभ का सिद्धांत है।
2. मितव्ययता का सिद्धांत (Cannon of Economy) – इसका अर्थ है कि राज्य को मुद्रा मे मितव्ययी
होना चाहिए अर्थात फिजूल खर्चो तथा व्यर्थ के व्यय से बचना चाहिए। सार्वजनिक व्यय कुशल
और उत्पादक होना चाहिए। अत: राज्य को आवश्यकता से अधिक खर्च नहीं करना चाहिए उसे जहाँ
तक संभव हो समाज को उत्पादन शक्तियों का विकास करना चाहिए यही अर्थव्यवस्था का सही
पहल है। Prof. Shirras के अनुसार - मितव्ययीता
का अर्थ है “करदाताओ के हितो की रक्षा के साथ-साथ राजस्व का विकास।” अत: राज्य द्वारा
किए गए राजस्व के वृद्धि मे सहायक होना चाहिए।
3. स्वीकृति का सिद्धांत (Cannon of Sanction) - स्वीकृति का सिद्धांत सार्वजनिक
व्यय मे संबंधित नीति का सही समाप्ति तथा निर्धारित हितो के प्रभवों से संबंधित है। इसके अनुसार खर्च
करने के लिए उच्च प्राधिकरण से अनुमती लेना
आवश्यक है। इसका अर्थ है की सरकारी प्राधिकरण को एक सीमा तक व्यय करने की स्वतन्त्रता
है परंतु इस एक निश्चित सीमा से अधिक व्यय करने के लिए उसे सक्षम अधिकारी से सही तौर
पर अनुमति प्राप्त करना होगी। इस सिद्धांत का लक्ष्य बेकार के खर्चो को रोकना है।
4. आधिक्य/बजट का सिद्धांत (Cannon of Surplus) – इसका अभिप्राय है कि सरकार को घाटे से बचाना
चाहिए और आधिक्य का बजट बनाना चाहिए। उन्हे एक साधारण व्यक्ति कि तरह आय से अधिक व्यय
नहीं करना चाहिए अर्थात हरेक को अपनी आय के अनुसार पैर फैलाने चाहिए। Prof. Shirras के अनुसार – “सार्वजनिक प्राधिकरणों को अपनी
आय की प्राप्ति तथा व्यय साधारण व्यक्तियों के समान करना चाहिए। वार्षिक व्यय नये साख
के सृजन बिना संतुलित किये जाए।”
5. अन्य सिद्धांत (Others Cannon) – उपरोकत सिद्धांतों के अतिरिक्त अन्य अर्थशातरियों द्वारा कुछ और सिद्धांत
भी सुझाए गए है जो की निम्नलिखित है-
(I) लोच का सिद्धांत (Cannon of Elasticity) – इसका अर्थ है
कि सरकार कि व्यय नीति मे लोच होनी चाहिए अर्थात देश कि आवश्यकताओ के अनुसार सार्वजनिक
व्यय के आकार और दिशा मे परिवर्तन संभव हो। अत: यह कठोर न होकर लोचदार होनी चाहिए।
दूसरे शब्दो मे सार्वजनिक व्यय इस प्रकार का हो कि आपात स्थिति मे संसाधनो का दूसरी
ओर लगाया जा सके। परंतु इससे देश की अर्थव्यवस्था और अन्य विकास कार्यक्रम पर बुरा
प्रभाव न पड़े।
(II) उत्पादकता का सिद्धांत (Cannon of Productivity) – इसका अभिप्राय है कि सार्वजनिक व्यय
से देश के उत्पादन को बढ़ावा मिले अर्थात देश कि सार्वजनिक व्यय का ज्यादा भाग उत्पादन
और विकास कार्यो पर आबंटित किया जाय।
(III) समान वितरण का सिद्धांत (Cannon of Equitable Distribution) – इसका अर्थ है कि सार्वजनिक व्यय इस प्रकार हो कि संपतिऔर आय का वितरण समान
हो । जिस देशो मे गंभीर असमानता कि स्थिति है वहाँ पर इसका विशेष महत्व है। इसे समाज
के गरीब वर्ग के लिए लाभकारी योजनाएँ बनाकर प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप
सार्वजनिक व्यय चिकित्सा शिक्षा, मकान,
वृद्धों को पेंशन इत्यादि पर किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह समाज के कमजोर
वर्गो को प्राथमिकता देकर रोजगार के अवसरो मे वृद्धि किया जा सकता है।
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Aspirants Mitraz
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