Public Revenue सार्वजनिक आय/ सार्वजनिक राजस्व
जिस प्रकार किसी व्यक्ति को अपनी विभिन्न आवश्यकताओ को पूरा
करने के लिए आय की जरूरत होती है, उसी प्रकार सरकार को भी अपने कार्यो को सफल
पूर्वक सम्पन्न करने के लिए आय की आवश्यकता होती है, सरकार विभिन्न
साधनों से जो आय प्राप्त करती है उसे सार्वजनिक आय व लोक आगम कहते है।
Prof. Dalton ने कहा है- “सार्वजनिक आय को सूक्ष्म
एंव व्यापक अर्थों में प्रयोग किया जाता है। व्यापक अर्थ में समस्त प्रकार की आय तथा प्राप्तियों
को सम्मिलित किया जाता है।”
सार्वजनिक आय के विभिन्न स्त्रोत निम्नलिखित है -
1. कर (Taxes) – सरकार जनता से अनिवार्य
रूप से सार्वजनिक कार्यो के संचालन के लिए जो धन वसूलती है उसे कर कहते है। कर के बदले
करदाता को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है।
Prof. Dalton के अनुसार-
“कर सार्वजनिक सता द्वारा लगाया गया एक अनिवार्य अंशदान है चाहे
उसके बदले में करदाता को अपनी सेवाए प्रदान की जाए या नहीं इसे किसी कानूनी संज्ञा
के रूप मे नही लगाया जाता है।" Prof. Taylor के अनुसार
– “कर सरकार को दिए गए अनिवार्य भुगतान है जो की करदाता द्वारा
किसी प्रत्यक्ष लाभ की प्राप्ति की आशा नहीं की जाती।”
i). प्रत्यक्ष कर (Direct Tax) – प्रत्यक्ष कर
ऐसे कर होते है जो विधित रूप से जिस पर लगाया जाता है उसे ही इसका भुगतान करना पड़ता
है। जैसे – आयकर, निगम कर, संपति कर आदि।
ii). अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) - अप्रत्यक्ष कर
एक व्यक्ति पर लगाये जाते है जबकि ये पूर्णत: या आंशिक रूप से दूसरे व्यक्ति द्वारा
दिए जाते है। जैसे – बिक्री कर, सेवा कर, आयात कर एंव
निर्यात कर, उत्पाद कर आदि।
कर की विशेषताए -
I.
कर एक अनिवार्य भुगतान है।
II.
कर जन कल्याण के लिए किए गए व्यय के लिए लगाया जाता है।
III.
कर तथा उससे प्राप्त लाभ में कोई विशेष संबंध नहीं होता है।
IV.
कर से करदाता की मौद्रिक एनआईटीई प्रभावित होती है।
2. शुल्क (Fees) – सार्वजनिक आय का दूसरा मत्वपूर्ण स्त्रोत शुल्क है। शुल्क केवल उन व्यक्तियों द्वारा दिये जाते है जो सरकार द्वारा दी जाने वाली विशिष्ट सेवाओ का लाभ उठाते है। जैसे – सरकारी शिक्षा, सरकारी अस्पताल आदि।
Prof. Taylor ने कहा है – “शुल्क भुगतान करने वाले को एक चुनाव का अधिकार प्रदान करता है कि वह उससे मिलने वाले लाभ के लिए भुगतान करे या नहीं करे।”
इस प्रकार कर और शुल्क एक नहीं है क्योकि कर के बदले मे सरकार किसी प्रकार कि लाभप्रद सेवाए प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं होती जबकि शुल्क के बदले मे व्यक्ति को लाभ पहुँचाने की गारंटी होती है।
3. जुर्माना और दण्ड (Fines and Penalties) – नियम का उलंघन करने पर जुर्माना अथवा दण्ड लगाया जाता है।
यह आय के महत्वपूर्ण स्त्रोत नहीं है। इसका उदेश्य राज्यस्व एकत्रित करना नहीं है अपितु
अपराधी को दण्ड देना है। करो को भांति यह भुगतान भी अनिवार्य भुुुगतान है।
4. उपहार और भुगतान (Gifts and Grants) – उपहार और अनुदान
से प्राय: सार्वजनिक राज्यस्व का बहुत कम अनुदान निजी व्यक्तियों द्वारा किसी विशेष
उदेश्य के लिए सरकार को दिये जाते है। जैसे – युद्ध अथवा आपातकालीन स्थिति मे राहत
कोष अथवा सुरक्षा कोष मे दी गयी धन राशि।
5. मूल्य अथवा व्यापारिक आय (Price and Commercial Revenue) – सार्वजनिक राजस्व
के अन्य स्त्रोतों है मूल्य इन्हे व्यापारिक राजस्व के नाम से भी जाना जाता है। यह
सरकार को कुछ वस्तुओ और सेवाओ के विक्रय से प्राप्त होता है। सरकार का व्यवसाय वस्तुओ
की बिक्री अथवा सेवाओ जैसे – रेल, बस, बिजली, यातायात एंव जल आपूर्ति भी हो सकता है। इसी प्रकार सरकार इस्पात और तेल का
उत्पादन करके भी राजस्व प्राप्त कर सकती है।
6. लाइसेंस फीस (License Fees) - लाइसेंस फीस समान्य
रूप में लाइसेंस की तरह है लेकिन फीस से कुछ निर्धारित कार्य करने की अनुमति दी जाती
है। दूसरे शब्दो मे नियम और कानून के रख-रखाव हेतु तथा उसके नियंत्रण के लिए दी जाती
है। जैसे- सार्वजनिक सुरक्षा के लिए वाहन चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस का होना, बंदूक
रखने के लिए परमीट, शराब की दुकान चलाने हेतु लाइसेंस की जरूरत
इत्यादि।
7. जब्ती (Forfeiture) – जब्त मुद्रा सरकार
के द्वारा प्राप्ति की जाती है। यदि संविदा के अनुसार कोर्ट द्वारा कोई भी बंध पत्र
की जब्ती हो जाती है तो उससे प्राप्त मुद्रा इस श्रेणी में आती है। यह कुल राज्यस्व
का बहुत कम भाग है। यह राज्यस्व का मुख्य स्त्रोत नहीं है।
8. उधार (Borrowing) – अंत मे सार्वजनिक
राज्यस्व का एक और स्त्रोत है जनता से जमा बंधपत्रों के रूप में उधार लेना। इसमे विदेशी
एजन्सियो और संगठन का ऋण भी शामिल है। उदहारण के रूप मे I.M.F. और
World Bank ऐसे विश्व संगठन है जो विकासशील देशो को लंबी अवधि
के लिए ऋण प्रदान करते है।
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