राज्यसभा के संगठन, शक्तियों और आधिकार (Composition,Power and Function of the Council of State) -
राज्यसभा
भारतीय संसद का दितीय या उच्च सदन है। इसे लोकसभा की तुलना मे कम शक्तियों प्राप्त
है, लेकिन फिर भी इसका अपना
महत्व और उपयोगिता है।
भारत में संधात्मक शासन की स्थापना की गई है। संध शासन मे संसद के दो संसद के दो सदन होते है – एक सदन जनता का प्रतिनिधित्व करता है, दूसरे सदन में राज्यों के प्रतिनिधि रहते है। इसलिए यहाँ दिसदनात्मक प्रणाली को ही स्थान दिया गया है। राज्यसभा एक स्थायी सदन होता है। वह कभी भंग नहीं होती। इसके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष के बाद स्थान खाली कर देते है और उनकी पूर्ति नये सदस्यों के द्वारा हो जाती है।
सदस्यों का निर्वाचन (Election of Council) –
भारत के संविधान के अनु. 80 के अनुसार राज्यसभा का सदस्यों का
निर्वाचन किया जाता है और सदस्यों की संख्या 250 होती है। इनमे से 12 सदस्य
राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते है। ये ऐसे व्यक्ति होते है जिन्हें कला, साहित्य,
विज्ञान और समाज सेवा के विषय अनुभव और व्यवहारिक ज्ञान रखते है। शेष सदस्य संघ की
ईकाईयों का प्रतिनिधित्व होते है और ये जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित
होते है। इन सदस्यों का चुनाव एकल संक्रमणीय मत तथा अनुपातिक प्रतिनिधित्व की
पद्धति के अनुसार संघ के विभिन्न राज्यों और संधीय क्षेत्रों की विधान सभाओ के
सदस्यों द्वारा किया जाता है।
हमारे संविधान
में ईकाई को राज्यसभा में प्रतिनिधित्व जनसँख्या के आधार पर दिया जाता है और
अमेरिका के समान भारत में संघ कि छोटी बड़ी सभी इकाईयों को द्वितीय सदन में
समान प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है। इस संबंध में संविधान यह व्यवस्था करता है की
एक राज्य कि प्रथम दस लाख पर एक के हिसाब से राज्य को राज्यसभा में प्रतिनिधित्व
प्राप्त है।
राज्यसभा की योग्यता –
राज्य सभा सदस्यों के लिए वे ही योग्यता है जो लोकसभा के सदस्यों के
लिए है। अंतर केवल यह है कि लोकसभा सदस्यों के लिए यह 25 वर्ष आयु किन्तु राज्यसभा
सदस्य के 30 वर्ष आयु या उससे अधिक हो सकता है। राज्यसभा के सदस्य के लिए जरूरी है
कि उसका नाम उस राज्य के किसी निर्वाचन क्षेत्र के सूची में हो, जिस राज्य से वह
राज्यसभा का चुनाव लड़ना चाहता है।
कार्यकाल –
राज्यसभा एक स्थायी सदन है जो कभी भंग नहीं होता। इसके सदस्यों का कार्यकाल 6
वर्ष है और राज्यसभा के एक तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष बाद सेनावृति हो जाते है।
राज्यसभा के दो पदाधिकारी –
राज्यसभा के दो प्रमुख पदाधिकारी होते है। सभापति (Chairman) और उपसभापति (Deputy-Chairman)।
भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन(पद पर रहने की वजह से) सभापति होता है और उसका कार्यकाल 5 वर्ष
है।
राज्यसभा
के शक्ति और कार्य (Power and Function of the Council of State) –
राज्यसभा
के शक्ति और कार्य निम्नलिखित है-
1. विधायी
शक्ति (Legislative Power) – किसी भी प्रकार का धन विधेयक राज्यसभा में प्रस्तावित नहीं होता है। अन्य
कोई भी विधेयक तभी पास होता है जब दोनों सदन से पास न हो। जब किसी विधेयक पर दोनों
सदनों को बुलाकर उस मतभेद को दूर करता है और दोनों सदनों के बहुमत से जो निर्णय हो
जाता है वही अंतिम निर्णय समक्षा जाता है।
2. वित
संबंधी कार्य (Financial Function) – संविधान के अनुसार वित विधेयक पहले लोकसभा में ही प्रस्तावित किए
जायेंगे। लोकसभा से स्वीकृत होने पर वित विधेयक राज्यसभा में भेजा जायेगा। जिसके
द्वारा अधिक से अधिक 14 दिन तक इस विधेयक पर विचार किया जा सकेगा। राज्यसभा वित
विधेयक के संबंध में अपना सुक्षाव लोकसभा को दे सकती है लेकिन यह लोकसभा कि इच्छा
पर निर्भर है कि प्रस्ताव माने या न मानें।
3. संविधान
में संशोधन करने का अधिकार (Powers and Function to Amend Constitution) – संविधान में संशोधन लेन में संसद के दोनों को समान
अधिकार प्राप्त है। संशोधन का प्रस्ताव पास होने के लिए दोनों सदनों के सदस्यों का
स्पष्ट बहुमत या 2/3 सदस्यों का बहुमत का होना अति आवश्यक है। दोनों सदनों के बीच
मत भिन्नता आ जाने पर संयुक्त अधिवेशन के द्वारा ही निर्णय होता है। अत: इस कार्य
में भी राज्यसभा के अधिकार तथा कार्य नगण्य है।
4. कार्यपालिका संबंधित अधिकार (Executive Function) – संसदात्म्क शासन व्यवस्था में मंत्रिपरिषद संसद के लोकप्रिय सदन के प्रति ही उतरदायी होती है। अत: भारत में भी मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उतरदायी है। राज्यसभा के सदस्य मंत्रियो से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते है और उनकी आलोचना भी कर सकते है। परन्तु इन्हें अविश्वास द्वारा मंत्रियो को हटाने का अधिकार नहीं है।
5. विविध शक्ति (Miscellaneous Function) –
i. राज्यसभा
के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते है।
ii. राज्यसभा के सदस्य लोकसभा के सदस्यों के साथ मिलकर उपराष्ट्रपति का चुनाव करते है।
iii. राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति तथा सर्वोच्च न्यायधीशों पर महाभियोग लगा
सकती है।
iv. राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर बहुमत से प्रस्ताव पास कर उपराष्ट्रपति को उसके पद
से हटा सकती है। उपराष्ट्रपति को पद से हटाने का प्रस्ताव प्रथम बार राज्यसभा में
ही पारित होकर लोकसभा के पास जाता है।
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