केंद्र एंव राज्यों के बीच विधायी संबंधों की विवेचना (Legislative Relation Between Centre and States) 

संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य के विधायी संबंधों कि चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य अनुच्छेद भी इस विषय से संबंधित है। केंद्र-राज्य संबंध के विधायी संबंधों का संचालन उन तीन सूचियों के आधार पर होता है – 

1. संघ सूची (Union List) 2. राज्य सूची (State List) 3. समवर्ती सूची (Concurrent List)


संध सूची के भीतर वर्णित सभी विषयों आर विधि बनाने का अधिकार भारत की संसद को प्राप्त है। राज्यों को इस पर विधि बनाने का अधिकार प्रपात नहीं है। राज्य सूची के भीतर वर्णित सभी विषयों पर विधि बनाने का अधिकार राज्य की विधानसभा को प्राप्त है तथा समवर्ती सूची में वर्णित सभी विषयों पर विधि बनाने का अधिकार केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार दोनों को प्राप्त है।

1. संघीय सूची (Union List) – संघीय सूची के विषय पर केन्द्रीय सरकार को कानून बनाने का अधिकार है। इस सूची के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व के विषय रखे गये है और उन पर एक ही प्रकार की निति का अनुकरण आवश्यक होता है। इस सूची के विषयों 99 पर केंद्र सरकार कानून बनाती है। जैसे – प्रतिरक्षा, वैदेशिक मामले, व्यापार, बैंक, मुद्रा, डाकतार नागरिकता, हवाई मार्ग, टेलीफोन, खान-खनिज बीमा इत्यादि।

2. राज्य सूची (State List) – इस सूची में सधारणतय वे विषय रखे गये है जो क्षेत्रीय महत्व के है। इस सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार समान्यत: राज्यों की व्य्वस्थापिकाओं को प्राप्त है। इस सूची 61 विषय है जिनमे महत्वपूर्ण विषय है – पुलिस, न्याय, जेल, स्थानीय स्वशासन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, सिचाई और सड़के आदि।

3. समवर्ती सूची (Concurrent List) – औपचारिक रूप में और कानून दृष्टि से इन तीन सूचियों के विषयों कि संख्या वही बनी हुई है जो मूल संविधान में थी। 42 वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा राज्य सूची के चार विषय (शिक्षा, वन, जंगली-जानवर तथा पंक्षियों कि रक्षा तथा नाप-तौल) समवर्ती सूची में कर दिए गए है और समवर्ती सूची में एक नयी विषय जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन शामिल किया गया है इस प्रकार समवर्ती सूची की संख्या 52 हो गई है। इस सूची में साधारणतय वे विषय रखे गए है जिनका महत्व संधीय और केन्द्रीय दोनों ही दृष्टि से है। इस सूची के विषय पर संध और राज्य दोनों को ही कानून निर्माण करने का अधिकार प्राप्त है। यदि इस सूची के किसी विषय पर संध तथा राज्य सरकार द्वारा निर्मित कानून परस्पर विरोधी हो तो सामान्यत: संध का कानून मान्य होगा। इस सूची के महत्वपूर्ण विषय – फौजदारी, विधि तथा प्रक्रिया निवारक निरोध, विवाह और तालाक, उतराधिकार श्रमिक संध, सामाजिक सुरक्षा, पुर्नवास और पुरातत्व और शिक्षा इत्यादि।

अवशिष्ट विषय (Residuary Power) – ऐसे विषय जो इन सूचियों में उल्लिखित नहीं है, वे विषय अवशिष्ट विषय है और उन पर केंदीय सरकार को ही कानून बनाने का अधिकार है।

राज्यों सूची के विषयों पर संसद की व्यवस्थापन की शक्ति –

1. राज्य सूची का विषय राष्ट्रीय महत्व का होने पर – संविधान के अनु. 249 के तहत राज्य सभा अपने 2/3 बहुमत से ऐसा प्रस्तावित कर दे कि राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के विषय पर संसद उन विषय पर कानून बना सकती है पर इसकी अवधि 1 वर्ष होगी।

2. राज्यों के विधानमंडल द्वारा प्रकट करने पर – अनु. 252 के अनुसार यदि दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमंडल प्रस्ताव पास कर यह इच्छा व्यक्त करते है कि ये सूची के किन्ही विषयों पर संसद द्वारा कानून का निर्माण किया जाए तो उन विषयों पर अधिनियम बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त हो जाता है। राज्यों को न संशोधित और न समाप्त करने की प्रावधान है।

3. संकटकालीन घोषणा होने पर (अनुच्छेद 250) – संकटकालीन घोषणा की स्थिति में राज्य की समस्त विधायिनी शक्ति पर भारतीय संसद का अधिकार हो जाता है। इस घोषणा की संपति के 6 माह बाद तक संसद द्वारा निर्मित कानून पूर्ववत् चलते रहेगा।

4. राज्य में संवैधानिक व्यवस्था भंग होने पर – अनुच्छेद 356 – यदि किसी राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो जाए या संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए तो राष्ट्रपति राज्य विधानमंडल के समस्त अधिकार भारतीय संसद को प्रदान करता है।

5. अन्तराष्ट्रीय संधि और सम्क्शोते को लागू करने के लिए संसद राज्य सूची के विषय पर भी कानून बना सकती है।

इस प्रकार विधायी क्षेत्र में सूची के आधार पर संध तथा राज्यों के बीच अधिकारों के विभाजन के बाद भी केंद्र को अधिक अधिकार प्रदान कर उसे अधिक शक्तिशाली बनाया गया है।